________________
तीसमो संधि
एक्कहो करे कालवट्ठ रसइ अवरहो गंडीउ णाई हसइ एक्कहो रहवरु रयणेहिं जडिउ अवरेक्कहो वीसकम्म-घडिउ एक्कहो भीसणु तोणा-जुयलु अवरहो ण स-उरगु वामरुलु एक्कहो फुरति मणि-कुंडलई अवरहो ण रवि-ससि-मडलई ८
धत्ता धण-कचण-वण्णेहिं अज्जुण-कण्णेहिं दारुणु सर-संगामु किउ । रवि-राहा-णदणु वाहेवि संदणु अंतरे ताम विकण्णु थिउ ॥९
वीमच्छ-विकण्ण वे-वि भिडिय ण गयवइ जूहहो णिव्वडिय ण धण धण-धग्धर-धोर-सर ण संड चंड ढेक्कार-सर ण सीह-किसोर विझे स-कम सामरिस स-विस विसहर विसम हम्मति हणति दलंति पर छिंदति परोप्पर सरेहिं सर ४ तो णरेण पसारिउ सर-पडलु दूरहो जे णिवारिउ कुरुव-वलु कप्परिउ विकण्णहो धणुहु गुणु णिज्जीउ कहो वि किं कज्जु पुणु किउ ख डु खडु दहावरणु वहु-लोहहो मग्गणु जमकरणु जज्जरिय तुरंगम छिण्णु धउ रहु खंडिउ सारहि समरे हउ ८
धत्ता जं किउ पेक्वंतहो कउरव-तंतहो विरहु विकण्णु धणजएण । दुज्जोहण-भाएं चाव-सहाएं हक्कारिउ सत्तुजएण ॥ ९
सत्तंजय-अज्जुण अभिडिय णं सायर-मंदर दुरिस दुज्जोहण-धम्मराय-अणुय 'णं गहवइ-गहकल्लोल थिय
करि-केसरि णाई समावडिय णं हरि-अट्ठावय सामरिस णं अक्खकुमार-वीर-हणुय अवरोप्परु कंडाकंडि किय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org