________________
उणतीसमा संधि
तेरह-वरिसेहिं भरियएहि रण-सिरि-रहसाऊरिएण
कुरु-पंडवह पवढिउ विग्गहु । लइउ सुसम्में दाहिण-गोग्गहु ।।
[१]
जे दुज्जोहणेण चर पेसिय वसुमइ तेहि असेस गवेसिय गिरि-गहणइं जलवाहिणि-कूलइ विउल-लया-भवणइं तरु-मूलई पट्टण-गाम-सीम-उज्जाणइं सिद्ध खेत्त-रिसि-तावस-थाणई गयउरु गय पडिवारा कुरु-चर पंडव णत्थि पिहिवि-परमेसर ताहं वि मरण-वत्त णो भावइ रह-वाहणइं गयइं दारावइ वुद्धि-रहिय सव्वई पइ-सुण्णेहिं सव्वई संपडति कुरु-पुणेहि तो दूसासणेण वोल्लिज्जइ अण्णे काइ उवाए किज्जइ अज्ज-वि चरहं सहासई पेसहि णिउणु होवि महि सयल गसहि ८
धत्ता को जागइ किह कज्ज-गइ जो जहिं दीसइ सो तहिं दम्मइ । पंडव-वग्ध-भुवंगमहं मुथह-मि तहं वीसासु ण गम्मइ ॥ ९
[२]
तं दूसासण-वयणु हसिज्जइ अम्हहं एत्तिउ चित्तहो भावइ पंच-वि सूर वीर सुइ-वण्णा पंच-वि पंचिंदिय-णित्तिल्ला
गुरु-गंगेय-किवेहि बोल्लिज्ज इ पंडव णउ मरंति चंपावइ पंच-वि णय-विक्कम-संपण्णा पंच-वि जगु जिणंति एक्कल्ला ४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org