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अट्ठावीसमो संधि
१३१ अप्पणउं णिहेलणु जाइ किर उच्छलिय सुजेट्ठहो ताम गिर जा जाहि भडारिए कहि-मि तुहुं राउलहो स-णयरहो देहि सुहु घट्टज्जुण-ससए समुण्णएण वोल्लिज्जइ रोस-वसंगएण जइ एवहिं घल्लिय कह-वि पई तो पुरु धाएवउ सयल मई
धत्ता जइ पुणु थत्ति महु धरे तेरह दिवसउ देसहो । पुण्ण-मणोरहिय तो रण्जु सई भुंजेसहो ।
इय रिट्टणेमिचरिए धवलासिय-सयंभुव-कए
अट्ठावीसमो सगगो ॥
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