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रिट्टणेमिचरिउ
धत्ता
जो एत्थ करंति पुरे गंधव्व पंच महु पेसणु । जइ जाणंति पई ते णेति पाव जम-सासणु ॥
[७] जोएप्पिणु दोमइ-मुह-कमलु पभणइ णव-णाय- सहास-वलु हउ सुहड-सएहिं पडिवज्जियउ पई सुंदरि णवर परज्जियउ पडिमल्ल ण हरि-हरचउवयण पंचहिं गंधवहिं का गणण छुडु करे पसाउ जीवावे. मइं भुजावमि वसुमइ-अध्दु पई अवहेरि करेवि गय दुमय-सुय तहो णवी कामावत्थ हुय णिय ससहे कहिज्जइ कइकइहे मणु रंजहि आयहे तीमइहे जहिं अच्छमि हउँ एयग्ग-मणु तहिं पट्टवे लेवि समालहणु स-वि पेसिय तेण-वि धरिय करे रइ-लालसेण एक्कत-घरे
धत्ता सीहहो हरिणि जिह णिय-पुण्णेहिं केम-वि चुक्की । कंक-विराड जहिं कलुगु रुवंति पढुक्की ॥
[८] तो तेण विलक्खीहूवरण . अणुलग्गे जिह जम-दूयएण चिहुरेहिं धरेवि चलणेहिं हयपेक्वंतहं रायहं मुच्छ गय मणे रोसु पवइदिउ वल्लवहो किर देइ दिट्टि तरु-पल्लवहो मरु मारमि मच्छु स-मेहुणउ पट्टमि कयंतहो पाहुणउ तो तव-सुएण आरुट्टएण विणिवारिउ चलणंगुट्टएण ओसरिउ विओयरु सणियउ पुरवर-णारिउ आदण्णियउ धि-धि दड्ढ-सरीरें काई किउ कुल-जायहं जायहं मरणु थिउ जहिं पहु दुच्चरिउ समायरइ तहिं जणु सामण्णु काई करइ . ८
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