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________________ १०६ जई - वि धोरु पारमिउ विग्गहु जई - वि आय कुरु वसण- णिहाला विलुद्धरणे तो-वि मइ - धीरहं पाइय जइ वि तुम्हे वणे अवगुण जइ-वि परोप्परु जणिय- महाहव तं णिसुणेवि संचल्लिय राणी किर कुरुवइ करावें चाडु-सयई अद्ध वहे जि परिहउ ताम किउ अहो अहो अरि-कुल-करि-पंचाणण पिय-हिय वयण रयण-रयणायर कुरु-कुल-वसुज्जुअ- चंदुग्गम रणधुर- धरण - किणकिय-कंधर पंडव-पुंडरीय पंडिवोहण कमलाउह-कमलं किय-करयल पर परिहव - परि- रक्खण-गारा दे भत्तार - मिक्ख महु दीणहे तो जामिणिगम-जम - गोयरेण सई करेण करेवउ जासु खउ भीमु णडंतु णिवारिउ राएं गह-कल्लोले किंज्जइ चप्पणु 10-8b 1 Jain Education International विसु जउ-भवणु जाउ केसग्गहु दुज्जण - दुम्मुह-दुपपरिवाला अमर - पराउह - लिहिय- सरीरहं कुढे लग्गंति तासु भीमज्जुण अवसरे पुट्ठिदिति कि वंधत्र तुहिणाहय व णलिणि विद्दाणी घत्ता रिमिचरिउ [ ११ ] तुम्हहं पेक्खउ पय-पंकयई । गंधव्वेहिं वंधेवि णरवइ णिउ ॥ ९ राय राय राया-रायाणण भव्व - जीव- राजीव - दिवायर सिरि- रामा हिराम -सुह - संगम पालिय- दुष्परिपाल- वसुंधर पगुण-गुणोह-महामणि- रोहण करुण-भाव सरणाइय- वच्छल कुढे लग्गहि कुरुवइहे भंडारा सरण - मणहे गुण-गण-परिहीणहे घत्ता किउ वद्वावणउ विओयरेण सो पर For Private & Personal Use Only रिहउ ॥ [१२] उत्तम - पुरिसहं काई कसाएं तो-त्रिण मुत्रइ चंदु धवलत्तणु ८ ४. ८ www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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