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[41] में आधुनिकता के चिन्ह सुस्पष्ट हैं । उसके कई पदों एवं प्रयोगों में हम पुरानी हिन्दी के संकेत पाते है । काव्यत्व की दृष्टि से भी धवल अपभ्रंश कवियों की द्वितीय-तृतीय श्रेणी में कहीं है । हितोपदेश और धर्मबोध 'हरिवंश' की शैली में प्रकट हैं। फिर भी धवल के 'हरिवंश' के कुछ अंशों में, १२२ सन्धियो के विस्तार के फलस्वरूप और विषय एवं रचनाशैली की सुदीर्घ पूर्वपरम्परा के फलस्वरूप काव्यत्व का स्पर्श अवश्य है और कुछ अंशों की विशिष्टता का श्रेय उसकी भाषा में और वर्णनों में प्रविष्ट समयसामयिक तत्त्वों को देना होगा ।
. धवलकृत 'हरिवंश' की ५३, ५४ और ५५ इन तीन सन्धियों में कृष्णजन्म से लेकर कंववध तक की कथा है । कथा के निरूपण में और वर्णनों में बहुत कुछ रूढि को ही अनुसरण है। फिर भी कहीं-कहीं कवि ने अपनी मौलिकता दिखाई है।
नवजात कृष्ण को नन्दयशोदा के करों में वसुदेव से सौंपने के प्रसंग को इस प्रकार अंकित किया गया है:
नन्द के वचन सुनकर वसुदेव गद्गद् कण्ठ से कहने लगा-तुम मेरे अर्वोत्तम इष्टमित्र, स्वजन, सेवक एवं बान्धव हो । बात यह है कि जिन जिन दुर्जय, अतुलबल, तेजस्वी पुत्रों ने मेरे यहाँ जन्म पाया उन सबका कंस ने मेरे पास से कपटभाव से वचन लेकर विनाश कर दिया । तब इष्टवियोग के दुःख से व्यथित होकर इस बार मैं तुम्हारा आश्रय इंढता हुआ आया हूं।
बार-बार नन्द के कर पकडकर वसुदेव ने कहा- यह अपना पुत्र तुम्हे' अर्पण कर रहा हूँ। अपने पेट के पुत्र की नाई उसकी देखभाल करमा । कंस के भय से उसकी रक्षा करना । कंस ने हमारे सभी पत्रों की हत्या करके हमें बार बार रुलाया है । देवनियोग होगा तो यह बच्चा उबरेगा । यह हमारा इकलोता है यह जान कर इसको सम्हालना ।
(५३-१४) ५३-१७ में नैमित्तिक बालकृष्ण के असामान्य गुणलक्षणों का वर्णन करता है । लोग बधाई देने को आते है। यहां पर जन्मोत्सव में ग्वालिनों के नृत्य के वर्णन में धवल ने अपनी समसामयिक ग्रामीण वेशभूषा का
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