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________________ [16] उठा कर घर से बाहर निकल गया । घनघोर वर्षा से उसकी रक्षा करने के लिए वसुदेव उसपर छत्र धरकर चलता था ।' नगर के द्वार कृष्ण के चरणस्पर्श से खुल गए । उसी समय कृष्ण को छींक आई । यह सुनते वहीं बन्धन में रखे हुए उग्रसेन ने आशिष का उच्चारण किया । वसुदेव ने उसको यह रहस्य गुप्त रखने को कहा । कृष्ण को लेकर वसुदेव और बलराम नगर से बाहर निकल गए । देदीप्यमान शृंगधारी देवी वृषभ उनको मार्ग दिखाता उनके आगे-आगे दौड़ रहा था । यमुना नदी का महाप्रवाह कृष्ण के प्रभाव से विभक्त हो गया । नदी पार करके वसुदेव वृन्दावन पहुंचा और वहां पर गोष्ठ में बसे हुए अपने विश्वस्त सेवक नन्दगोप और उसकी पत्नी यशोदा को कृष्ण को सौंपा । उनकी नवजात कन्या अपने साथ लेकर वसुदेव और बलराम वापस आए । कंस प्रसूति की खबर पाते ही दोड़ता आया । कन्या जान कर उसकी हत्या तो नहीं की फिर भी उसके भावो पति की और से भय होने की आशंका से उसने उसकी नाक को दबा कर चिपटा कर दिया । गोपगोपोजनों के लाडले कृष्ण व्रज में वृद्धि पाने लगे । कंस के ज्योतिषी ने बताया कि तुम्हारा शत्रु कहीं पर बडा हो रहा है । कंस अपना सहायक देवियों को आदेश दिया कि वे शत्रु को ढूंढ निकालें और उसका नाश करें । इस आदेश से एक देवी ने भीषण पक्षी का रूप लेकर कृष्ण पर आक्रमण किया । कृष्ण ने उसकी चोंच दबाइ तो वह भाग गई । दूसरी देवी पूतना का रूप धारण कर अपने विषलिप्त स्तन से कृष्ण को स्तनपान कराने लगी तब देवों ने कृष्ण के मुख में अतिशय १. २. ३. वि. के अनुसार देवकी के परामर्श से वसुदेव कृष्ण को गोकुल ले चला । इसमें कृष्ण पर छत्र धरने का कार्य उनकी रक्षक देवताएं करती हैं । त्रिच. के अनुसार देवताएं आठ दीपिकाओं से मार्ग को प्रकाशित करती थी और उन्होंने श्वेत वृषभ का रूप धरकर नगर द्वार खोल दिए थे । त्रिच. के अनुसार ये प्रारम्भ के उपद्रव कंस की और से नहीं, अपितु वसु. देव के बैरी शुक विद्याधर की ओर से आये थे । विद्याधरपुत्री शकुनी शकट के उपर बैठ कर नीचे खेल रहे कृष्ण को दबाकर मारने का प्रयास करती है । और पूतना नामक दूसरी पुत्री कृष्ण को विषलिप्त स्तन पिलाती है । कृष्ण की रक्षक देवियां दोनों का नाश करतीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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