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हरिवंसपुराणु
[११] सवियारई कामुक्कोवणाई रूपेण णिरुद्धई लोयणाई गेएण वसीकय कण्ण दो-बि थिउ हियवउ हिय-सामण्णु होवि "स-वि पुच्छिय कलयलु काई माए विष्णविय णवेप्पिणु सुयणु गाए
एहु गायणु जो चंडालु आउ तहो उप्परि कुषिय वियम्भ-राउ विहसेटिपणु वुचइ वालियाए मई लइउ सयवर-मालियाए कहे तणउ वप्प कहे तणिय माय महु आयहो उप्परि इच्छ जारा जो हुउ सो हुउ कुलेण काई तहिं हियउं जाइ जहिं लोयणाई त्रिणिवारहो कि कोलाहलेण किउ पाणिग्गहणु सुमंगलेण
घत्ता जाएवि लग्ग करे गलगज्जिउ वाले। रक्खहो राय-सुय मई णिय चंडाले ॥
।१२] जइ सकहो तो रक्खहो वलेण णिय वहु मई डोंवें विट्ठलेण पण्णत्ति-पहावे भुय-पलंवु पज्जुण्ण-कुमारहो मिटिड संवु तहिं काले कलह-विणिवारएण जाणाविउ रुप्पिद णारएण एहु रुणिणि-गंदणु कामएउ तुम्हहं जि सहोयरु भाइणेउ थोवंतरि जायव तहिं जे आय अवरोप्परु खेमाखेमि जाय -मेल्लेप्पिणु सम्वेहि किउ विवाहु परिओसिउ हलहरु पउमणाहु
रुपिणि णारायण-चित्त-चोरि जंववइ-पउम-गंधारि-गोरि -वसुएउ समुद्दविजउ स-णेमि जो होसइ सव्वहो जगहो सामि ८
घत्ता जं जे दिण्णु फलु तं जइ-वि ण मग्गइ । दइवे पेरियउ सई भुपहिं जे लग्गइ ।
इय रिटणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए ।
जात्यवकंडं समत्तं ॥
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