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________________ ९४ पण वेष्पिणु परम - जिणिदु वृत्त गणगण-गामि गुण-समिद्धु दारावइ - पुरिहिं दइव वसेण तो णिसुतहो महु परमेसरेण घण- घण्ण-सुवण्ण-जण - पगामे दुब्वाएं अविरल - पाउसेण उप्पण्ण मरेपिणु तहिं जे गामे पहिला णामें अग्गिभूइ वहतंड करेवि सहुं मुनिवरे हिं सल्लेहणेण सुर- लोउ पत साकेय - पुरिहिं पुणु इन्भ जाय Jain Education International पुणभद्द समरे माणिभद्दु अबरु गय सग्गहो सल्लेहणु करेवि गरे उप्पण्ण णरिंद-पुत महुड में अतुल - गठब वडर - परमेसरु वीरसेणु चंदाभ-णाम तो तणिय भज्ज पइ तावसु तहे विरहेण जाउ महु - केद्रवहु कालंतरेण बाबी सोहि सम वसेवि तेत्थु कि कीडउ णं णरु पहु णिरुचु पारायण - णारउ इहु पसिद्धु घन्त्ता चक्कवइ जणद्दण्णु । विच्छोइड णंदणु ॥ [३] चक्कव इहे अक्खड जिणवरेण हरिवंसपुराणु वे जंवुव होता सालि-गामे संतेण विमुक्क महाउसेण सोमगिल-मणि- मिहुण-धामे अणु-संभउ वीयर वाउभूइ जिण-धम्मु लइज्जइ दियवरेहिं तहि षसेवि पंच- पल्लई नियन्त सावय-वय-संजय वे - वि भाय घन्त्ता अणियच्छिय- पच्छलु । जिण - सासण- वच्छलु ॥ For Private & Personal Use Only [४] विहि उबहि- पमाणेहिं ओयरेवि रिसि-गण-गुण- गणणा गुणिय-सुन्त किय-वस-विहेय सामंत सब्व विच्छोइड करिणिहे जिह करेणु महुराएं हिय परिहरेवि लज्ज सो धूमकेउ ओयरिवि आउ गय सग्गु पसणे जिणवरेण इहु मयणु हू रुप्पिनिहे एत्यु - ८ ८ ४ ८ www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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