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________________ हरिवंसपुराणु जहिं सुंदर मंदिरई अणेयई चंदाइच्च-समपह-तेयई केत्तिउ वार-वार वोल्लिज्जइ हथिणायउरु कहो उवमिज्जइ पत्ता तहिं पर एत्तिउ दोसु हरिवंस-महदह-डोहणु । दुम्मुहु दुण्णयवंतु जं वसइ दुदठु दुज्जोहणु ॥ [३] णयरु णिएवि गिय-रहसु ण रक्खइ पुच्छइ वालु मह-रिसि अक्खइ किह धरणिहे अंगई कंटइयइ णं णं धणई कणिसब्भहियई किह महि-चिहुर-भारु थिउ उच्चउ गं गं तरु-आराम-समुच्चउ किह उत्थल्लेवि उवहि अहिडिउ णं णं परिहा-वलठ परिठिउ किह हिमवंतु महंतु महीहरु णं णं पुर-पायारु मणोहरु किह हिमगिरि-सिहरई वहु-वहलई णं णं मंदिराई छुह-धवलई किह मेहउल महीयलु पत्तई णं णं गय-विंदई मय-मत्तई किह तरंग मयरहरहो केरा णं णं कुरु-तुरंग पर-पेरा पत्ता किह थल-भिसिणी भावइ वियसियई सेय-सयवत्तई। गं गं ससि-धवलाई आयई दुज्जोहण-छत्तई ॥ [४] एत्थु अराइ-राय-रण-रोहणु णिवसइ कुरुव-राउ दुजोहणु सच्चहे पक्खिउ दुण्णयवंतउ तेण विवाहु जो हु आढत्तउ उवहि-माल वर-विक्कम-सोरहो देसइ णिय सुय भाणुकुमारहो । मंगल-तूरु एहु ओवज्जइ गंण पाउसे जलणिहि गज्जइ. ४ पुरवरे रच्छावण ओवट्टइ एत्तिउ कुरु-जण्णत्त पयट्टइ एत्थु विवाहे ताहे असुहावणु होसइ तुह जणणिहे महावणु तं णिसुणेवि कुमारु पलित्तउ गंदवग्गि दुव्वाएं छित्तउ । रिसि स-विमाणु मुएप्पिणु तेत्तहे पइसइ कुरुव-राय-पुरु जेत्तहे । ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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