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________________ इह सोलह सिविणा जे पति अवयरित जयंतहो लेय-णाहु हो मंगलु सिव-कल्लाण-संति थिउ सिव-सरीरे तणु-तणु-सणाहु ८ 'पुण्ण-पवित्तु कति-संपुष्णउ इंदणील-मणि-मुंज-सवण्णउ । थिउ सिय-देविहे देहम्मतरे अलि जिह पउमिणि-पंकय-केसरे ॥९ वारह कोडिउ पंचास लक्ख वसु-हार पडिय धरे तीस-पक्ख संपुण्णे मासे जिणु जणिउ घण्णु सावण-सिय-ठिहे साम-वण्णु चित्ता-रिक्खें सुह-लग्ग-जोए णिम्मल-दिणे हिम्मल-गयण-भाए उप्पण्णु भडारउ सिबहे जाव संखुम्भइ देवागमणु ताव भावण-वितर-जोइसह जाय कंवुय-पडह-झुणि सीह-णाय जय-पंट-सद्दु सेसामराह णं गउ कोकाउ हारे-पुर-सराहं -सहसक्खहो आसण-कंपु जाउ सावेहिं सहुं खेस-सुरेहिं आउ अहरावउ कंचणगिरि-समाणु थिउ जंब्दोष-परिप्पमाणु वत्तीस-सुंड बत्तास-वयणु चउसदठि-कण्णु चउसठि-णयणु एकाए मुहे अट्ठ दंत कलोहय-वलय-उवसोह-दित ८ घत्ता दंते दंते सरु सरे सरे पतिाण स-वि वत्तोस-कमल-णिठवत्तिणि । कमले कमले वत्तीस जे फ्लाई पत्ते पत्ते णट्टाह मि तेत्तई ॥ ९ __ [८] तहिं नेह र मायाविए गई दे चल-कण्ण-ताल-तुलियालि-विदे मय-णइ-पक्वालिय-गंड-वासे सिकार-मारुआऊरियासे जारूदु पुरंदरु भाव-गहिउ सत्तावीसच्छर-कोडि-सहिउ संचल चउठिवह सुर-णिकाय णं सुण्णउं सग्गु करेवि आय ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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