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________________ अमितगतिविरचिता भुञ्जानः काक्षितं भोगं कुरङ्ग्या से विमोहितः । न विवेद गतं कालं वारुण्येवं मदातुरः ॥५३ आसाद्य सुन्दराकारां तां प्रियां नवयौवनाम् । पौलोम्यालिङ्गितं' शक्रं स मेने नात्मनो ऽधिकम् ॥५४ युवती राजते नारी न वृद्धे पुरुषे रता। किं विभाति स्थिता जीणे कम्बले नेत्रपट्टिको ॥५५ अवज्ञाय जरां योषां तरुणी यो निषेवते। विपदा पोड्यते सद्यो ददात्याशु सदा व्यथाम् ॥५६ तरुणीतः परं नास्ति वृद्धस्यासुखवर्धकम् । वह्निज्वालामपाकृत्य किं परं तापकारणम् ॥५७ तरुणीसंगपर्यन्ता वृद्धानां जीवितस्थितिः । वज्रवह्निशिखासंगे स्थितिः शुष्कतरोः कुतः ॥५८ ५३) १. बहुधान्यकः नाम । २. सन् । ३. क मदिरया । ४. पीडितः मोहितः प्राणी। ५४) १. इन्द्राण्यालिङ्गितं इन्द्रम् । २. ज्ञातवान् । ५५) १. पट्टकूल। ५६) १. जरामेव स्त्रियम् । २. कष्टम् । उधर कुरंगीमें आसक्त होकर इच्छानुसार भोगको भोगते हुए उसका बहुत-सा समय इस प्रकार बीत गया जिस प्रकार कि शराबके नशे में चूर होकर शराबीका बहुत समय बीत जाता है और उसे भान नहीं होता है ॥५३।। वह ग्रामकूट सुन्दर आकृतिको धारण करनेवाली और नवीन यौवन ( जवानी ) से विभूषित उस प्यारी पत्नीको पाकर इन्द्राणीसे आलिंगित इन्द्रको भी अपनेसे अधिक नहीं मानता था-उसे भी अपनेसे तुच्छ समझने लगा था ॥५४॥ पुरुषके वृद्ध हो जानेपर उसमें अनुरक्त स्त्री सुशोभित नहीं होती है। ठीक है-पुराने कम्बल में स्थित रेशमी वस्त्र क्या कभी शोभायमान होता है ? नहीं होता है ॥५५।। जो जरारूप स्त्रीका तिरस्कार करके युवती स्त्रीका सेवन करता है वह शीघ्र ही विपत्तिसे पीड़ित किया जाता है । उसे वह युवती निरन्तर कष्ट दिया करती है ।।५६।। । युवती स्त्रीको छोड़कर दूसरी कोई भी वस्तु वृद्ध पुरुषके दुखको बढ़ानेवाली नहीं हैउसे सबसे अधिक दुख देनेवाली वह युवती स्त्री ही है। ठीक है-अग्निकी ज्वालाको छोड़कर और दूसरा सन्तापका कारण कौन हो सकता है ? कोई नहीं ॥५७॥ वृद्ध पुरुषोंके जीवनकी स्थितिका अन्त-उनकी मृत्यु-उक्त युवती स्त्रियोंके ही संयोगसे होता है । ठीक है-वनाग्निकी शिखाका संयोग होने पर भला सूखे वृक्षकी स्थिति कहाँसे रह सकती है ? नहीं रह सकती ।।५८।। ५४) ब नात्मनाधिकं । ५५) क स्थिरा; अपट्टिकाः, ब पत्रिका । ५६) ब क ड ददत्याशु । ५७) इ ज्वालामुपा । ५८) ड वज्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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