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________________ धर्मपरीक्षा-४ किमाश्चयं त्वया दृष्टं करणेनेति भाषिते । अगदीदिति मूढो ऽसौ जानात्यज्ञो हि नापदम् ॥१२ यादृशा विषये ऽमुत्र तुङ्गाश्चणकराशयः । मरीचिराशयः सन्ति तादृशा विषये मम ॥१३ करणेन ततो ऽवाचि से भृशं कुपितात्मना। कि त्वं ग्रस्तो ऽसि वातेन येनासत्यं विभाषसे ॥१४ मरीचिराशयस्तुल्या दृष्टाश्चणकराशिभिः । नास्माभिविषये क्वापि दुष्टबुद्धे कदाचन ॥१५ किलात्र चणका देशे मरोचानीव दुर्लभाः। मम नो गणना क्वापि मरीचेष्वपि विद्यते ॥१६ विज्ञायेत्ययमस्माकं दुष्टो मुग्धत्वनर्मणा। उपहासं करोतीति क्षिप्रमेष निगृह्यताम् ॥१७ १४) १. मधुकरः । १५) १. क नगरे। १६) १. चणकेषु । १७) १. मधुकरः । २. हासेन । ३. वध्यताम् । ___ यह सुनकर उनके अधिकारीने उससे पूछा कि तुमने यहाँ कौन-सी आश्चर्यजनक बात देखी है ? इसपर वह मूर्ख इस प्रकार बोला । ठीक है-अज्ञानी पुरुष आनेवाली आपत्तिको नहीं जानता है ॥१२॥ वह बोला-इस देशमें जैसी ऊँची वनोंकी राशियाँ हैं मेरे देशमें वैसी मिरचोंकी राशियाँ हैं ॥१३॥ यह सुनकर अधिकारीने अतिशय क्रोधित होकर उससे कहा कि क्या तुम वायुसे ग्रस्त (पागल ) हो जो इस प्रकारसे असत्य बोलते हो ॥१४॥ __ हे दुर्बुद्धे ! हम लोगोंने किसी भी देश में व कभी भी चनोंकी राशियों के समान मिरचोंकी राशियाँ नहीं देखी हैं ॥१५।। __इस देशमें मिरचोंके समान चना दुर्लभ है, मेरी गिनती कहींपर भी मिरचोंमें भी नहीं है; ऐसा जान करके यह दुष्ट मूर्खतासे हम लोगोंकी हँसी करता है। इसीलिए इसको शीघ्र दण्ड दिया जाना चाहिए ॥१६-१७।। १२) अ भाषितः, ब भाषितं । १३) क ड मरीचं । १४) अ ब सत्यानि भाषसे । १६) इ मरीचात्यन्त'; ब गणका । १७) ब मुग्धेन; इ भर्मणा; ब क ड मेव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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