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________________ ३३३ धर्मपरीक्षा-२० आषाढे कातिके मासे फाल्गुने वादितः' सुधीः । गृहीत्वासौ गुरोरन्ते क्रियते विधिना विधिः ॥१४ पञ्चमाससमेतानि पञ्चवर्षाणि भक्तितः। उपवासो विधातव्यो मासे मासे मनीषिभिः ॥१५ उपवासेन शोष्यन्ते यथा गात्राणि देहिनः । कर्माण्यपि तथा क्षिप्रं संचितानि विसंशयम् ॥१६ विशोषयति पापानि संभृतानि शरीरिणाम् । उपवासस्तडागानां जलानीव दिवाकरः ॥१७ उपवासं विना जेतु शक्या नेन्द्रियमन्मथाः। सिंहेनैव विदार्यन्ते कुञ्जरा मदमन्थराः ॥१८ रोहिणीचन्द्रयोर्योगः पञ्चवर्षाण्युपोष्यते। भक्त्या सपञ्चमासानि येनासौ सिद्धिमश्नुते ॥१९ विमुक्तिकामिनी येने तृतीये दीयते भवे । विधानद्वितयस्यास्य किं परं कथ्यते फलम् ॥२० १४) १. प्रथमारम्भे । २. पञ्चमीउपवासविधिम् । १९) १. दिवसः । २. अपोष्येण । ३. व्रती । २०) १. विधानेन व्रतेन । यह पंचमी-उपवासकी विधि गुरुके निकट में ग्रहण करके प्रथमतः आषाढ़, कार्तिक अथवा फाल्गुन मासमें विधिपूर्वक प्रारम्भ की जाती है ।।१४।। इस विधिमें बुद्धिमान् जनोंको पाँच मास अधिक पाँच वर्ष तक प्रत्येक मासमें उपवास करना चाहिए ॥१५॥ कारण यह कि उपवाससे प्राणीका जिस प्रकार शरीर सूखता है-कृश हुआ करता है-उसी प्रकार उसके पूर्वसंचित कर्म भी शीघ्र सूखते हैं-निर्जीर्ण हो जाते हैं, इसमें सन्देह नहीं है ॥१६॥ __ जिस प्रकार सूर्य तालाबोंके संचित जलको सुखा डालता है उसी प्रकार उपवास प्राणियों के संचित पाप कर्मोंको सुखा डालता है-उन्हें क्षीण कर देता है ।१७।। ___उपवासके बिना इन्द्रियों और कामका जीतना शक्य नहीं है। ठीक भी है-मदसे मन्द गतिवाले हाथियोंको एक मात्र सिंह ही विदीर्ण कर सकता है, सिंहको छोड़कर दूसरा कोई भी उन्हें परास्त नहीं कर सकता है ॥१८।। जिस दिन रोहिणी नक्षत्र और चन्द्रमाका योग हो उस दिन सात मास अधिक पाँच वर्ष तक भक्तिपूर्वक उपवास किया जाता है। इससे उपवास करनेवाला मुक्तिको प्राप्त करता है ॥१९॥ जो उपर्युक्त दोनों विधान-पंचमीव्रत व रोहिणीव्रत-तीसरे भवमें मुक्तिरूप वल्लभा१७) अ संभूतानि। १८) अ न शक्येन्द्रियं । १९) अ सप्त for पञ्च। २०) अ विधानविलयस्यास्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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