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________________ २५३ धर्मपरीक्षा-१५ आवयो रक्षतोस्तत्र भिक्षुवासांसि यत्नतः । आजग्मतुः शृगालौ द्वौ भीषणौ स्थूलविग्रहौ ॥७७ त्रस्तावावां ततो यावदारूढौ स्तूपमूजितम् । तावदुत्पतितौ तं' तौ गृहीत्वा विगतौ दिवि ॥७८ श्रत्वावयोः स्वनं यावन्निर्गच्छन्ति तपस्विनः। योजनानि गतौ तावद् द्वादशैतौ महास्यदो' ॥७९ मुक्त्वा स्तूपैमिमौ भूम्यामावां खादितुमुद्यतौ। गृद्धौ सौनश्विकांश्चित्रानद्राष्टां शस्त्रधारिणः ॥८० तावस्मद्भक्षणं त्यक्त्वा तेभ्यो भीतौ पलायितो । करोति भोजनारम्भं न को ऽपि प्राणसंशये ॥८१ ततः पापधिकैः सार्धमागत्य विषयं' शिवम् । आवाभ्यां मन्त्रितं द्वाभ्यां निश्चलीकृत्य मानसम् ॥८२ ७८) १. स्तूपम् । २. आकाशे। ७९) १. शीघ्रगामिनौ। ८०) १. क क्षुद्रपर्वतम् । २. शृगालौ । ८१) १. तौ। ८२) १. देशम् । २. इति मन्त्रितम् । तदनुसार हम दोनों वहाँ उन भिक्षुओंके वस्त्रोंकी रक्षा प्रयत्नपूर्वक कर रहे थे। इतने में दो मोटे ताजे भयानक गीदड़ [गीध] वहाँ आ पहुँचे ।।७।। ___ तब हम दोनों उनसे भयभीत होकर एक बड़े टीले के ऊपर चढ़े ही थे कि इतने में वे दोनों उस टीलेको उठाकर ऊपर उड़े और आकाशमें चले गये ।।७।। उस समय हमारे आक्रन्दनको सुनकर जब तक भिक्षु बाहर निकले तबतक वे दोनों बड़े वेगसे बारह योजन तक चले गये थे ।।७९॥ ___ पश्चात् वे दोनों गीध उस टोलेको पृथिवीपर छोड़कर जैसे ही हम दोनोंको खानेके लिए उद्यत हुए वैसे ही उन्हें शाखोंके धारक अनेक प्रकारके शिकारी कुत्तोंके साथ वहाँ आते हुए दिखाई दिये ।।८०॥ तब उनसे भयभीत होकर उन दोनोंने हमें खानेसे छोड़ दिया और स्वयं भाग गये । ठीक है-प्राण जानेकी शंका होनेपर कोई भी भोजनको प्रारम्भ नहीं करता है किन्तु उसे छोड़कर अन्यत्र भाग जानेका ही प्रयत्न करता है ।।८१।। तत्पश्चात् हम दोनोंने शिकारियोंके साथ शिव देशमें आकर मनको स्थिर करते हुए इस प्रकार विचार किया हम दोनों दिङ्मूढ होकर इस दूसरेके देशको प्राप्त हुए हैं व अपने ७७) ड इ रक्षितोस्तत्र । ७८) अ वेगतो दिवि । ७९) अ ब क इ महास्पदौ । ८०) ब क ड इ गृध्रौ for गृद्धौ । ८१) इ प्राणसंकटे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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