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________________ धर्मपरीक्षा - १५ कर्णे ऽग्राहि यतो राजा बालेन मुखदर्शने । आजुहावे महाप्रीत्या ततस्तं कर्णसंज्ञया ॥४० अवीवृधदसौ' बालमपुत्रः पुत्रकाङ्क्षया । अद्रव्यो द्रव्यलाभेन द्रव्यराशिमिवोजितम् ॥४१ चम्पायां सोऽभवद्राजा तत्रातीते' महोदये । आदित्ये भुवनानन्दी व्योमनीव निशाकरः ॥४२ आदित्येन यतो ऽवध भूभृतादित्यजस्ततः । ज्योतिष्केण पुनर्जातो नादित्येन महात्मना ॥४३ निर्धातुकेन देवेन न नार्यां जन्यते नरः । पाषाणेन कदा धात्र्यां जन्यन्ते सस्यजातयः ॥४४ ४०) १. आकारयामास । ४१) १. आदित्यः । ४२) १. तस्मिन् आदित्ये मृते सति । ४४) १. हि । २. पृथिव्याम् । उस समय उस बालकने अपने मुखको देखते समय चूँकि राजाको कानमें ग्रहण किया था अतएव उसने उक्त बालकको 'कर्ण' इस नाम से बुलाया - उसका उसने 'कर्ण' यह नाम रख दिया ||४०|| २४७ उसके कोई पुत्र न था । इसलिए उसने उसे पुत्रकी इच्छासे इस प्रकार वृद्धिंगत किया जिस प्रकार कि कोई निर्धन मनुष्य धनकी इच्छासे उस धनकी राशिको वृद्धिंगत करता है ||४१|| जिस प्रकार महोदय - अतिशय उन्नत (तेजस्वी ) - सूर्यके अस्त हो जानेपर आकाशमें उदित होकर चन्द्रमा लोकको आनन्दित करता है उसी प्रकार उस महोदय - अतिशय उन्नत (प्रतापी) - आदित्य राजाके अस्तंगत हो जानेपर ( मृत्युको प्राप्त ) वह कर्ण राजा होकर लोकको आनन्दित करनेवाला हुआ ||४२॥ महा मनस्वी उस कर्णको चूँकि आदित्य राजाने वृद्धिंगत किया था, इसीलिये वह आदित्यज - सूर्यपुत्र - कहा जाता है; न कि आदित्य (सूर्य) नामके ज्योतिषी देवसे उत्पन्न होनेके कारण ||४३|| कारण यह कि धातु ( वीर्य आदि) से रहित कोई भी देव मनुष्यस्त्रीसे मनुष्यको उत्पन्न नहीं कर सकता है। और वह ठीक भी है, क्योंकि, पत्थरके द्वारा भूमिमें गेहूँ आदि अनाज कभी भी उत्पन्न नहीं किये जाते हैं । अभिप्राय यह है कि समानजातीय पुरुष प्राणी समानजातीय स्त्रीसे समानजातीय सन्तानको ही उत्पन्न कर सकता है, न कि विपरीत दशा ||४४ || Jain Education International I ४१) अ क इ द्रव्यलोभेन । ४२) क तत्रातीव; अ भवनां । ४३ ) इ ज्योतिषेण; अ ड इ महामनाः । ४४ ) क ड तदा धात्र्याम् । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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