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अमितगतिविरचिता उदक्यया तया तस्य कौपीनं शुक्रकश्मलम् । परिधाय कृतं स्नानं कदाचिद्यौवनोदये ॥७३ जातं तस्यास्ततो गर्भ विज्ञाय निजवोयंजम् । तं' मुनिः स्तम्भयामास कन्यादूषणशङ्कितः ॥७४ सप्तवर्षसहस्राणि गर्भो ऽसौ निश्चलीकृतः । अतिष्ठदुदरे तस्याः कुर्वाणः पीडनं परम् ॥७५ परिणीता ततो भव्या रावणेन महात्मना । वितीर्णा मुनिनासूत पुत्रमिन्द्रजिताभिधम् ॥७६ पूर्वमिन्द्रजिते जाते सप्तवर्षसहस्रकैः । बभूव रावणः पश्चात् स्यातो मन्दोदरीपतिः ॥७७ सप्तवर्षसहस्राणि कथमिन्द्रजितः स्थितः । सवित्रीजठरे नाहं वर्षद्वादशकं कथम् ॥७८
७३) १. रजस्वलया कन्यया । २. मयस्य । ७४) १. गर्भम्।
किसी समय वह यौवन अवस्थाके प्रादुर्भूत होनेपर रजस्वला हुई। उस समय उसने वीर्यसे मलिन पिताके लंगोटको पहनकर स्नान किया। इससे उसके गर्भाधान हो गया। तब मय मुनिने उस गर्भको अपने वीर्यसे उत्पन्न जानकर कन्याप्रसंगरूप लोकनिन्दाके भयसे उसे स्तम्भित कर दिया-वहींपर स्थिर कर दिया ।।७३-७४।।
इस प्रकार मुनिके द्वारा उस गर्भको सात हजार वर्ष तक निश्चल कर देनेपर वह कन्याको केवल पीड़ा उत्पन्न करता हुआ तब तक उसके उदरमें ही अवस्थित रहा ।।७५।।
तत्पश्चात् ऋषिने उस सुन्दर कन्याको अतिशय शोभासे सम्पन्न रावणके लिए प्रदान कर दिया, जिसे उसने स्वीकार कर लिया। तब उसने इन्द्रजित् नामक पुत्रको जन्म दिया ॥७६।।
__ पूर्व में जब इन्द्रजित् उत्पन्न हो चुका तब कहीं सात हजार वर्षों के पश्चात् रावण मन्दोदरीके पतिस्वरूपसे प्रसिद्ध हुआ ॥७७।।
इस प्रकार हे विद्वान् विप्रो ! यह कहिए कि वह इन्द्रजित् सात हजार वर्ष तक कैसे माताके उदरमें अवस्थित रहा और मैं केवल बारह वर्ष तक ही क्यों नहीं माताके उदर में रह सकता था ||७८॥
७३) ड ततः for कृतम् । ७४) अ निजबीजनम् । ७६) अ ब महाश्रिया । ७७) ड जातो for ख्यातो।
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