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________________ २१२ अमितगतिविरचिता क्व स्थितो भुवनं विष्णुः प्रवेश्य जठरान्तरे । वागस्त्यः सो ऽतसीस्तम्बः क्व भ्रान्तश्च प्रजापतिः ॥४२ क्षितौ व्यवस्थितो भिण्डस्तत्र सेभः कमण्डलुः । चित्रं वो घटते पक्षो घटते न पुनर्मम ॥४३ सर्वज्ञो व्यापको ब्रह्मा यो जानाति चराचरम् । सृष्टिस्थानं कथं नासौ बुध्यते येने मार्गति ॥४४ आक्रष्टुं यः क्षमः क्षिप्रं नरकादपि देहिनः । असौ वृषणवालाग्रं न कथं कमलासनः ॥४५ यो ज्ञात्वा प्रलये धात्रों त्रायते ' सकलां हरिः । सीताया हरणं नासौ कथं वेत्ति न रक्षति ॥४६ यो मोहयति निःशेषमसाविन्द्रजिता कथम् । fa श्रीपतिबंद्ध नागपाशैः स लक्ष्मणेः ॥४७ ४४) १. कारणेन । ४६) १. रक्ष्यते । ४७) १. रामः। २. इन्द्रजितेन । ३. रामावतारे । ४. सह । समस्त लोको अपने उदरके भीतर प्रविष्ट करके वह विष्णु उस लोकके बिना कहाँ पर स्थित रहा ? इसी प्रकार उस लोकके अभाव में वह अगस्त्य ऋषि, अलसी वृक्ष की शाखा और भ्रान्तिको प्राप्त हुआ वह ब्रह्मा भी कहाँ पर स्थित रहा, यह सब आपके पुराण में विचारणीय है ॥४२॥ उधर पृथिवीके ऊपर वह भिण्डीका वृक्ष तथा उसके ऊपर हाथीके साथ वह कमण्डलु अवस्थित था । इस प्रकार यह आश्चर्यकी बात है कि मेरा पक्ष तो खण्डित होता है और आपका पक्ष युक्तिसंगत है ॥ ४३ ॥ दूसरे, जो ब्रह्मा सर्वज्ञ व व्यापक होकर सब चराचर जगत्को जानता है वह भला अपनी सृष्टि स्थानको कैसे नहीं जानता है, जिससे कि उसे इस प्रकार से खोज करनी पड़ती ॥४४॥ ब्रह्म प्राणियोंको नरकसे भी शीघ्र खींचने के लिए समर्थ है वह भला अण्डकोशके बालाको खींचने के लिए कैसे समर्थ नहीं हुआ, यह विचारणीय है ॥४५॥ जो विष्णु जान करके प्रलयके समय में समस्त पृथिवीकी रक्षा करता है वही रामके रूपमें सीता हरणको कैसे नहीं जानता है और उसे अपहरणसे क्यों नहीं बचाता है ? ॥४६॥ जो लक्ष्मीका स्वामी लक्ष्मण समस्त लोकको मोहित करता है वह भला इन्द्रजित् के द्वारा मोहित करके नागपाशोंसे कैसे बाँधा गया ? || ४७|| ४२) क्र जठरान्तरम्....क्त्रातसीस्तम्बः । ४३ ) क ड इ° स्थिते भिण्डे तत्र सेभ ; अ चित्रं विघटते पक्षो मम वो घटते पुनः, ब विप्र न घटते पक्षो मम देवो घटते पुनः; क ड न मम घटते पुनः । ४६ ) ब प्रलयम्; अ सीतापहरणम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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