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________________ धर्मपरीक्षा किया है। हरिभद्रने पुराणोंकी कल्पित कथाओंके भवनको बड़े ही विनोदके साथ छिन्न-भिन्न किया है, लेकिन हरिषेण और अमितगति तो इससे कुछ कदम इतने आगे बढ़ गये हैं कि उन्होंने उनके स्थानपर जैनउपदेशोंके गगनचुम्बी महल ही खड़े कर देने चाहे हैं। जयरामको रचनाके विशुद्ध जैन वर्णनोंका ठीक परिमाण हमें मालम नहीं है. लेकिन हरिषेणने उन्हें खब रखा है और अमितगतिने तो हद ही कर दी है। इसमें सन्देह नहीं कि धर्मपरीक्षाके प्रथम कलाकार-जो मेरी समझसे जयराम हैं-को धूर्ताख्यान या इसके अन्य किसी मलग्रन्थकी जानकारी अवश्य रही होगी। उद्देश्य और लक्ष्य एक है। लेकिन रचनाएँ भिन्न-भिन्न तरीकेपर सम्पादित की गयी हैं। कथानकके मख्य कथाके पात्र, स्थितियाँ, सम्बन्ध और कथावस्तुका ढाँचा-सब कुछ धूर्ताख्यानमें उपलब्ध इन वस्तुसे विभिन्न हैं। दस अन्तर्कथाएँ और चार मूल्की कथाएँ, जो धर्मपरीक्षामें ग्रथित हैं इस बातको निश्चित रूपसे बताती हैं कि इसमें धूर्ताख्यान-जैसे अन्य ग्रन्थोंका जरूर उपयोग किया गया है। अमितगतिकी धर्मपरीक्षामें कुछ अप्रमाणिक कथाएं हैं जो प्रस्तुत धर्मपरीक्षाको कथाओंसे मिलती-जुलती हैं। उदाहरणके लिए हाथोकमण्डलु ( अभि. घ. १-१७ आदि और घ. प. १२-७७ आदि ) की उपकथा तथा उस विच्छिन्न सिरकी उपकथा जो वृक्षपर फल खा रहा है (अ. ध. ३, १७ आदि और ध. प. १६-३४ आदि) इत्यादि । यत्र-तत्र वही एक-सी पौराणिक कथाएँ दृष्टिगोचर होती हैं। जैसे कि इन्द्र-अहिल्याकी, अग्निको भक्षण करती हुई यमपत्नीकी और ब्रह्मा-तिलोत्तमा की उपकथा आदि। लेकिन उपरिनिर्दिष्ट पौराणिक विवरण जो साधारण अप्रमाणिक कथाओंकी पुष्टिमें उपस्थित किये गये हैं, दोनों धर्मपरीक्षाओंमें एक-से नहीं पाये जाते हैं। इसका यह आशय है कि जयराम और उनके अनुयायी-हरिषेण और अमितगति-ने ऊटपटांग कथाओं और अविश्वसनीय विवरणोंके लिए पुराणोंको स्वतन्त्रताके साथ खूब छानबीन की है । जो हो, अमितगतिकी धर्मपरीक्षा और हरिषेणको धर्मपरीक्षा दोनों ही रुचिकर और शिक्षाप्रद भारतीय साहित्यके सुन्दर नमूने हैं। पुराणपन्थके उत्साही अनुयायियोंको एक तीखा ताना इन रचनाओंसे मिल सकता है। किन्तु भारतीय साहित्यके निष्पक्ष विद्यार्थीपर उसका अधिक असर नहीं पड़ेगा; क्योंकि उसके लिए कल्पनाको प्रत्येक दृष्टि अतीतको उस महान् साहित्यिक निधिको और अधिक समृद्ध करती है जो उसे विरासतमें मिली है। -(स्व.) डॉ. ए. एन. उपाध्ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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