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________________ १७५ धर्मपरीक्षा-११ देहस्थां पार्वती हित्वा जाह्नवी यो निषेवते। स मुञ्चति कथं कन्यामासाद्योत्तमलक्षणाम् ॥२३ यस्य ज्वलति कामाग्निहृदये दुनिवारणः। दिवानिशं महातापो जलधेरिव वाडवः ॥२४ कथं तस्यार्पयाम्येनां धूर्जटेः कामिनः सुताम् । रक्षणायाप्यते दुग्धं मार्जारस्य बुधैन हि ॥२५ 'सहस्राति गोपीनां तृप्ति षोडशभिर्हरिः। न सदा सेव्यमानाभिनंदोभिरिव नीरधिः ॥२६ गोपोनिषेवते हित्वा यः पद्मां हृदये स्थिताम् । स प्राप्य सुन्दरां रामां कथं मुञ्चति माधवः ॥२७ ईदृशस्य कथं विष्णोरपंयामि शरोरजाम् । चोरस्य हि करे रत्नं केन त्राणाय दोयते ॥२८ २५) १. रुद्रस्य। २६) १. तहि विष्णोः । अग्निसे सन्तप्त रहता है। इसीलिए उसने आधा शरीर स्त्रीको-पार्वतीको दे दिया है । इसके अतिरिक्त वह अपने शरीरके अर्धभागमें स्थित उस पार्वतीको छोड़कर गंगाका सेवन करता है । इस प्रकारसे भला वह इस उत्तम लक्षणोंवाली कन्याको पा करके उसे कैसे छोड़ सकता है ? नहीं छोड़ सकेगा ।।२२-२३।। जिस प्रकार समुद्रके मध्यमें अतिशय तापयुक्त वडवानल दिनरात जलता है उसी प्रकार जिस महादेवके हृदय में निरन्तर कष्टसे निवारण की जानेवाली कामरूप अग्नि जला करती है उस कामी महादेवके लिए रक्षणार्थ यह पुत्री कैसे दी जा सकती है-उसके लिए संरक्षणकी दृष्टिसे पुत्रीको देना योग्य नहीं है । कारण कि चतुर जन रक्षाके विचारसे कभी बिल्लीको दूध नहीं दिया करते हैं ॥२४-२५॥ । जिस प्रकार समुद्र हजारों नदियोंके भी सेवनसे कभी सन्तुष्ट नहीं होता उसी प्रकार जो विष्णु सोलह हजार गोपियोंके निरन्तर सेवनसे कभी सन्तोषको प्राप्त नहीं होता है तथा जो हृदयमें स्थित लक्ष्मीको छोड़कर गोपियोंका सेवन किया करता है वह विष्णु भी भला सुन्दर स्त्रीको प्राप्त करके उसे कैसे छोड़ सकेगा? वह भी उसे नहीं छोड़ेगा। इसीलिए ऐसे कामी उस विष्णुके लिए भी मैं अपनी प्यारी पुत्रीको कैसे दे सकता हूँ ? उसे भी नहीं देना चाहता हूँ । कारण कि ऐसा कौन-सा बुद्धिमान है जो चोरके हाथमें रक्षाके विचारसे रत्नको देता हो ? कोई भी नहीं देता है ।।२६-२८॥ २३) ब मुञ्चते । २७) क गोपीं; ब ड इ हित्वा पद्मां च; इ कन्यां for रामां । २८) ड इ तु for हि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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