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________________ अमितगतिविरचिता नाहत्वं' यदि मूर्खस्य हेमपीठाधिरोहणे । उत्तिष्ठामि तदा विप्रा इत्युक्त्वावततार सः ॥७३ विप्रैरुक्तं किमायातस्त्वमति ततो ऽवदत् । मार्जारविक्रय कर्तुमायातो ऽहं बनेचरः ॥७४ ओतोः' किमस्य माहात्म्यं किं मूल्यं विद्यते वद। इत्यसौ ब्राह्मणैरुक्तो निजगाद वनेचरः ॥७५ अस्य गन्धेन नश्यन्ति देशे द्वादशयोजने। आखवो' निखिलाः सद्यो गरुडस्येव पन्नगाः ॥७६ मल्यं पलानि पश्चाशद हेमस्यास्य महौजसः । तदायं गृह्यतां विप्रा यदि वो ऽस्ति प्रयोजनम् ॥७७ मिलित्वा ब्राह्मणाः सर्वे वदन्ति स्म परस्परम् । बिडालो गृह्यतामेष मूषकक्षपणक्षमः ॥७८ ७३) १. न योग्यत्वम् । ७५) १. मार्जारस्य; क बिडालस्य । ७६) १. मूषकाः । ७७) १. सुवर्णस्य । २. तेजस्विनः । हे विप्रो ! यदि मूर्खकी योग्यता सुवर्णमय सिंहासनके ऊपर बैठनेकी नहीं है तो मैं इसके ऊपरसे उठ जाता हूँ, यह कहता हुआ वह उस सिंहासनके ऊपरसे नीचे उतर गया ॥७॥ तत्पश्चात् उन ब्राह्मणोंने उससे पूछा कि तुम यहाँ क्यों आये हो। इसके उत्तर में वह बोला कि मैं वनमें विचरण करनेवाला भील हूँ और इस बिल्लीको बेचनेके लिए यहाँ आया हूँ ॥७४|| इसपर ब्राह्मणोंने पूछा कि इस बिलावमें क्या विशेषता है और उसका मूल्य क्या है, यह हमें बतलाओ । उत्तरमें मनोवेग बोला कि इसके गन्धसे बारह योजन मात्र दूरवर्ती देशके सब चूहे इस प्रकारसे शीघ्र भाग जाते हैं जिस प्रकार कि गरुड़के गन्धसे सर्प शीघ्र भाग जाते हैं ।।७५-७६।। इस अतिशय तेजस्वी बिलावका मूल्य सुवर्णके पचास पल ( लगभग ४ तोला ) है । यदि आप लोगोंका इससे प्रयोजन सिद्ध होता है तो इसे ले लीजिए ||७७॥ इसपर वे सब ब्राह्मण मिलकर आपसमें बोले कि यह बिलाव चूहोंके नष्ट करने में समर्थ है, अतः इसे ले लेना चाहिए ।।७८।। ७४) अ ब रुक्तः; इमागतो ऽहं । ७५) अ इ उत्तोः ; अ निजगाद नभश्चरः । ७६) ड योजनैः । ७७) ड हेममस्य महौ , इ हेम्नश्चास्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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