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________________ ११० अमितगतिविरचिता तस्य प्रदर्शितं तत्त्वं प्रशान्तिजननक्षमम्' । जन्ममृत्युजराहारि दुरापममृतोपमम् ॥२४ कालकूटोपमं मूढो मन्यते भ्रान्तिकारकम् । जन्ममृत्युजराकारि सुलभं हतचेतनः ॥ २५ सो ज्ञानव्याकुलस्वान्तो भव्यते पित्तदूषितः । प्रशस्तमीक्षते सर्वमप्रशस्तं सदापि यः ॥२६ अन्याय्यं मन्यते न्याय्यमित्थं यो ज्ञानवर्जितः । न किचनोपदेष्टव्यं तस्य तत्त्वविचारिभिः ॥२७ विपरीताशयो ऽवाचि भवतां पित्तदूषितः । अधुना भण्यते चूतः सावधानैर्निशम्यताम् ॥२८ अङ्गदेशे ऽभवच्चम्पा नगरी विबुधाचिता । दिवीवे स्वप्सरोरम्या हृद्यधामामरावती ॥२९ २४) १. क उपशमोत्पादकम् । २. क दुःप्राप्यम् । २७) १. क अनीतम् । २. हिताहितम् । २८) १. आम्रच्छेदी । २९) १. स्वर्गे [इ] व । २. मनोहरा । उसके लिए अमृतके समान उत्कृष्ट शान्तिके उत्पन्न करने में समर्थ और जन्म, मरण व जराको नष्ट करनेवाला जो दुर्लभ वस्तुका यथार्थ स्वरूप दिखलाया जाता है उसे वह मूर्ख दुर्बुद्धि कालकूट विष समान अशान्तिका कारण तथा जन्म, मरण एवं जराको करनेवाला सुलभ मानता है ।। २४-२५।। जो अज्ञानसे व्याकुल चित्तवाला मनुष्य निरन्तर समस्त प्रशंसनीय वचन आदिक निन्द्य समझा करता है उसे पित्तदूषित कहा जाता है ||२६|| इस प्रकार जो अज्ञानी मनुष्य न्यायोचित बातको अन्यायस्वरूप मानता है उसके लिए तत्त्वज्ञ पुरुष कुछ भी उपदेश नहीं दिया करते हैं ||२७|| मैंने उपर्युक्त प्रकारसे आप लोगोंके लिए विपरीत अभिप्रायवाले पित्तदूषित पुरुषका स्वरूप कहा है। अब इस समय आम्रपुरुषके स्वरूपको कहता हूँ, उसे सावधान होकर सुनिए ||२८|| अंगदेशमें विद्वानोंसे पूजित एक चम्पानगरी थी। जिस प्रकार स्वर्ग में देवोंसे पूजित, सुन्दर अप्सराओंसे रमणीय, एवं मनोहर भवनोंसे परिपूर्ण अमरावती पुरी सुशोभित है उसी प्रकार उक्त देशके भीतर स्थित वह चम्पानगरी भी अप्सराओंके समान सुन्दर स्त्रियोंसे रमणीय और मनोहर प्रासादोंसे वेष्टित होकर शोभायमान होती थी ||२९|| २४) अ प्रशान्तं । २५) ब क ड इ मेने for मूढो; क ड इ तदासी for मन्यते ; इ 'चेतनम् । २६) अ पितृहर्षितः । २८) अ reads 31-32 after this verse | २९) ड हृद्यमानामरा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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