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________________ P L. शुद्धपाठः 153 35 बम विषवाय 153 154 154 154 154 154 154 154 155 6 पढमे 155 17 तद् भावधूतमित्येवं 155 21 एवं पेगे 155 22 जहा विकमे 155 23 एवं पेगे 155 26 झिम्मियं 155 155 156 156 156 156 157 39 न लहुए न सीए न उन्हे 3 वदुमति 8 'सम्बन्धेन न प्रयतं [प्र० ] 16 समस्तलोकालोकखेदज्ञता 20 नं गुरु लघु 23 शाक्यादीनां [प्र० ] 24 तथा न विद्यते 33 इन्याति तिबेमि पास मुई च मस्माकं न । घातिकर्म ..कथयति । सोपपत्तिकं कारणमाह Jain Education International! 32 प्रदुष्यन्ति 33 16 156 156 20 प्रलपनाथल 156 18 उम्मगं ति विवरं वोन्मज्जनं 19 सर्वथा रन्ध्रमित्यर्थः, तदसौ न लभत ग्रीवा 27 कर्मशैवल 29 मप्येकं न प्रमां 1 अथवा रायंसी अथवाऽपस्मारीत्यादि, तथा कुष्ठी 160 160 22 तयेतश्चेतश्च शिरोधरां तद्रन्ध्र 160 161 161 161 161 161 161 157 157 157 15-16 गर्भस्वदोषो 157 20 पास मू ( मु – प्र० ) इं चत्ति 157 24 गिलासिणि 2 रिपिालकाकनद [प्र०] 13 झिम्मियं [ सिम्मियं - प्र० ] 157 30 भूयिष्ठाः 157 33 द्विशतिभेदा 157 40 157 42 'पादलक्षणं [20] 13 विषविच्छुभिः 158 312 तंदवासज्जित प्र०) ज्ञात्वा P. 158 158 158 15837-38 प्रतिसंवेदयन्ति अनुभवन्ति 159 1-2 L. शुद्धपाठः 27 भवेद् [प्र० ] 161 162 29 ° दृष्टोऽभिभवश्च 35 सदसद्विवेक 162 162 162 162 162 159 159 159 159 159 159 159 36 शुक्रनिषेकादिक्रमेणेति 39 सन्तोऽभिवृद्धा 159 160 5 किह णाम 160 10 पाखण्डिविप्र 160 13 शुभद्वारपरिघे 160 14 'कपाटः स धृति कुर्यादिति उपसंह 5 6 त्रसमत्स्य कच्छपादयः तथा [5] जलजा अपि [प्र० ] रमकमिति ॥ कर्म विपाकाद् जन्तवो : यस्मात् यस्मादेव राम पाकलितः [५० ] 9 14 30 शिष्यामन्त्रणे 33 पवेति रन्नाह [ प्र० ] 31 प्रवितिण्णा चेए 34 वेदनीयासन्नप्रादु" "अविगणय्या 38 जेयुरित्याह 2 कामान् द्विरूपानपि 7 सद्भिरवितीर्णाः 8 कथञ्चित् कुत्रचित् कदा° 10 प्रयाणष्पभिइ सुपणिहिते 17 धर्मचरणेषु (सु) प्रणिहिता : 17. अत्र च सर्वाणि (प्र० ] 32 पुव्वि दुच्चिन्नाणं 12 जनखाइ अयं पुरिले वित्तचित्ते ध पुरिसे, दित्तचित्ते श्रयं पुरिसे, उम्मायपत्ते श्रयं पुरिसे, ममं च णं तब्भव' [ प्र० ] 10 फासे फासे 13 18 उक्ताः येऽस्मिन् 21 पाराक्य [ प्र० ] 23 कुलेहि सुद्धसणाए For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001423
Book TitleAcharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1978
Total Pages764
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, agam_acharang, & agam_sutrakritang
File Size26 MB
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