________________ महावीर के उपदेश : 126 : 13 : यह जीव - हिंसा ही ग्रन्थ--कर्मो का बन्ध है, यही मोह है, यही मृत्यु है, और यही नरक है। जिसे तू मारना चाहता, वह तू ही है। जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है। (यह अद्वैतभावना ही अहिंसा का मूलाधार है।) : 15 : संसार में सभी प्राणी जीना चाहते हैं, मरना नहीं चाहते। इसलिए प्राणिवध को घोर समझ कर निम्रन्थ उसका परित्याग करते हैं। उन पाँचों महाव्रतों में सबसे प्रथम स्थान, जिसका भगवान महावीर ने निर्देश किया है, अहिंसा का है। सभी प्राणियों पर संयम रखने को ही उन्होंने कुशल अहिंसा कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org