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भक्तामर-स्तोत्र
स्वर्गापवर्गममार्ग - विमार्गणेष्टः
सद्धर्मतत्त्वकथनक - पटुस्त्रिलोक्याः । दिव्यध्वनिर्भवति ते विशदार्थसर्व
भाषास्वभाव-परिणामगुणः प्रयोज्यः ।३५। अन्वयार्थ-- (ते) आपकी (दिव्यध्वनिः) दिव्यध्वनि (स्वर्गापवर्गममार्ग - विमार्गणेप्टः) स्वर्ग और मोक्ष को जाने वाले मार्ग को खोजने में इष्ट (त्रिलोक्याः ) लीन लोक के जीवों को (सद्धर्मतत्त्व - कथनैक-पट:) सम्यक् धर्मतत्त्व के कथन करने में अत्यन्त प्रवीण और (विशदार्थसर्व-भाषा-स्वभाव-परिणामगुणैः प्रयोज्यः ) स्पष्ट अर्थ वाली समस्त भाषाओं में परिवर्तित होने वाले स्वाभाविक गुणों से प्रयुक्त-सहित (भवति) होती है ॥३५॥
भावार्थ-हे दीनबंधो ! आपकी दिव्य - ध्वनि स्वर्ग और मोक्ष का मार्ग बताने में प्रिय मित्र के समान है, तीन लोक के प्रति सद्धर्म और सद्वस्तु का स्वरूप कहने में अद्वितीय चतुर है, विशद अर्थ की चोतक है और संसार की सब भाषाओं में परिणत होने के महान विलक्षण गुण से युक्त है।
टिप्पणी तीर्थंकर भगवान् की भाषा को दिव्य-ध्वनि कहते हैं । दिव्य - ध्वनि का सबसे विलक्षण चमत्कार यह है- विभिन्न
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