________________
दो बोल
यह भक्तामर-स्तोत्र है । अनुयोगद्वार-सूत्र के आदानपद नाम के उल्लेखानुसार, इस स्तोत्र का भक्तामर नाम प्रारम्भिक पद के ऊपर से चल पड़ा है । परन्तु स्तोत्र में भगवान् ऋषभदेव की स्तुति की गई है। स्तोत्र का छन्द वसन्ततिलका है, जो संस्कृत-साहित्य में बहुत मधुर एवं श्रेष्ठ छन्द माना जाता है।
भक्तामर स्तोत्र के निर्माता आचार्य श्री मानतुंग हैं । आप बड़े ही प्रतिभाशाली विद्वान् और जिन शासनप्रभावक आचार्य हो गए हैं। भक्ति-रस तो आप में कूटकूट कर भरा हुआ था। भक्तामर-स्तोत्र का एक-एक अक्षर आपकी भगवद्-भक्ति का यशोगान कर रहा है। अवन्ती नगरी के राजा वृद्धभोज ने चमत्कार देखने की इच्छा से आपको हथकड़ी-बेड़ी डालकर जेलखाने में कैद कर दिया था और बाहर मजबूत ताले लगाकर पहरा बैठा दिया था। तीन दिन आचार्यश्री ध्यानस्थ रहे । चौथे दिन भगवान् आदिनाथ की स्तुति के रूप में भक्तामर-स्तोत्र का निर्माण किया। ज्यों ही 'आपादकण्ठ'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org