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भक्तामर स्तोत्र
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के पत्तों पर (मुक्ताफलय तिम्) मोती के समान कान्ति को ( उपैति ) प्राप्त होता है ||८||
भावार्थ- हे नाथ ! यह मेरा तुच्छ स्तोत्र आपके प्रभाव से अवश्य ही सज्जन पुरुषों के मन को हरण - मुग्ध करनेवाला होगा - यह जानकर ही मैं अपनी मन्दमति का सहारा लेकर आपका स्तवन रचने के लिए प्रवृत्त हुआ हैं ।
पानी की नन्हीं सी बूंद में स्वयं कोई चमत्कार नहीं है, परन्तु वही कमलिनी के स्वच्छ पत्र का संसर्ग पाकर अनमोल मोती की शोभा को प्राप्त कर लेती है । टिप्पणी
सत्संग की महिमा बहुत बड़ी है । यह सत्संग का ही प्रभाव है, कि कमल के पत्त े पर पड़ी हुई जल की बूँद मोतीसी झलक पा लेती है । आचार्य कहते हैं कि इसी तरह 'यह साधारण-सी स्तुति भी आपके सम्बन्ध के प्रभाव से सत् - पुरुषों के मन को हर लेगी, उत्कृष्ट रचनाओं में स्थान पाएगी ।' आचार्य की भविष्य वाणी सर्वथा सत्य ही प्रमाणित हुई । हजार वर्ष आए और चले गए । भक्तामर आज भी भक्तों के हृदय का हार बना हुआ है ।
आस्तां तव स्तवनमस्त समस्त दोषं, त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्र किरणः कुरुते प्रभव, पद्माकरेषु जलजानि विकाश- भाञ्जि || |
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