SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भक्तामर स्तोत्र १२ के पत्तों पर (मुक्ताफलय तिम्) मोती के समान कान्ति को ( उपैति ) प्राप्त होता है ||८|| भावार्थ- हे नाथ ! यह मेरा तुच्छ स्तोत्र आपके प्रभाव से अवश्य ही सज्जन पुरुषों के मन को हरण - मुग्ध करनेवाला होगा - यह जानकर ही मैं अपनी मन्दमति का सहारा लेकर आपका स्तवन रचने के लिए प्रवृत्त हुआ हैं । पानी की नन्हीं सी बूंद में स्वयं कोई चमत्कार नहीं है, परन्तु वही कमलिनी के स्वच्छ पत्र का संसर्ग पाकर अनमोल मोती की शोभा को प्राप्त कर लेती है । टिप्पणी सत्संग की महिमा बहुत बड़ी है । यह सत्संग का ही प्रभाव है, कि कमल के पत्त े पर पड़ी हुई जल की बूँद मोतीसी झलक पा लेती है । आचार्य कहते हैं कि इसी तरह 'यह साधारण-सी स्तुति भी आपके सम्बन्ध के प्रभाव से सत् - पुरुषों के मन को हर लेगी, उत्कृष्ट रचनाओं में स्थान पाएगी ।' आचार्य की भविष्य वाणी सर्वथा सत्य ही प्रमाणित हुई । हजार वर्ष आए और चले गए । भक्तामर आज भी भक्तों के हृदय का हार बना हुआ है । आस्तां तव स्तवनमस्त समस्त दोषं, त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्र किरणः कुरुते प्रभव, पद्माकरेषु जलजानि विकाश- भाञ्जि || | · Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001421
Book TitleBhaktamara stotra
Original Sutra AuthorMantungsuri
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1987
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, M000, & M010
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy