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वीर-स्तुति से वारिया इत्थि सराइभत्तं, उवहाणवं दुक्ख-खयट्ट्याए । लोगं विदित्ता आरं परं च, सव्वं पभ वारिय सव्व वारं ।।२८॥
श्रीमत् तपस्वी वीर ने दुख नष्ट करने के लिए। झट रात्रि-भोजन मैथुनादिक पाप सारे तज दिए । इस लोक को, परलोक को अच्छी तरह से जानकर । सबही तरह सबका निवारण कर दिया शुभ ध्यान धर॥२८॥
रात्रिभोजन, कामिनी के संग का वारण किया, दुःख के क्षय-हेतु अति ही उग्र तप का पथ लिया। लोक अरु परलोक की सब वासनाए छोड़ दी, सब प्रकार ममत्व की दढ़ श्रखलाएँ तोड़ दी ।।२८।।
भगवान महावीर त्याग मार्ग के अत्यन्त कठोर साधक थे, अतएव स्त्री का स्पर्श तक भी नहीं करते थे और न कभी रात को भोजन ही खाते थे। सांसारिक दुःखों की परस्परा का समल क्षय करने के लिए भगवान ने उन तपश्चरण किया था। लोक और परलोक के रहस्य को जानकर भगवान ने सब प्रकार की लोक-परलोक सम्बन्धी वासनाओं का भी पूर्ण रूप से परित्याग कर दिया ।
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