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दो बोल
यह वीर स्तुति है । भगवान् महावीर की महत्ता का एक बहुत सुन्दर उज्ज्वल चित्र, जो उन्हीं के एक महान् ज्ञानी एवं संयमी शिष्य गणधर श्री सुधर्मा स्वामी के द्वारा उपस्थित किया गया है ।
भगवान् महावीर कौन थे ? उनमें ऐसी क्या विशेषता थी, जो उनका स्मरण करें ? क्या आज के इस इतिहास प्रधान युग में भी यह प्रश्न पूछा जा सकता है ? ढ़ाई हजार वर्ष पहले भारत का क्या चित्र था ? धर्म के नाम पर जड़ क्रिया काण्ड, देवी-देवताओं की पूजा के नाम पर निरीह पशुओं का निर्दय बलिदान, वर्ण-व्यवस्था के नाम पर कुछ मानव देहधारी जीवों का पशुओं से भी गयागुजरा घृणित तिरस्कारमय जीवन, नारी जाति क पराधीनता और हीनता का नंगा नृत्य । भगवान् महावीर ने भारत की पद-दलित मानवता को ऊँचा उठाया, भारतीय-संस्कृति में नया प्राण उंडेला, अन्ध श्रद्धा के स्थान पर धर्म का विशुद्ध रूप जनता के सामने रखा । उनका उपकार अवर्णनीय है । जिस दिन हम उनके उपकारों को भूला देंगे, उस दिन हम विश्व के प्रांगण में आदमी नहीं, पशु के रूप में खड़े होंगे ।
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