________________
२६
वीर-स्तुति
दाणाण सेट्ठ अभय-प्पयाणं,
सच्चेसु वा अणवज्जं त्रयन्ति । तवेसु वा उत्तम - बंभचेरं, लोगुत्तमे समणे नायपुत्ते ||२३||
सम्पूर्ण दानों में अभय सद्-दान ही है श्रेष्ठतर । निरवद्य सत्य हो सत्य वचनों में कहा है श्रेष्ठतर ॥ जैसे तपो में श्रेष्ठता है विश्वविश्रुत शील की । तैसे जगत में श्रेष्ठता मुनि, ज्ञात नंदन वीर की ||२३||
भोजनादिक दान में उत्तम अभय का दान है, सत्य में निष्पाप करुणा-सत्य की ही शान है । ब्रह्मचर्य महान है तप के अखिल व्यवहार में, ज्ञातनन्दन हैं श्रमण उत्तम सकल संसार में ||२३||
जिस प्रकार सब दानों में अभय-दान उत्तम है, सत्यों में पाप - रहित दयामय सत्य उत्तम है, तपों में ब्रह्मचर्य तप उत्तम है, उसी प्रकार तीन लोक में ज्ञातपुत्र श्रमण भगवान महावीर सब से उत्तम थे ।
Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org