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________________ वीर-स्तुति रुक्खेसु णाए जह सामली वा, जंसी रतिं वेदयती सुवन्ना । वणेसु वा नन्दणमाहु सेटूट्ठ, नाणेण सीलेण य भूतिपन्ने || १८ || २१ जैसे सकल तरु- वृन्द में तरु शाल्मली की श्र ेष्ठता : जिस पर सुपर्णकुमार करते प्राप्त नित्य प्रसन्नता ॥ सारे वनों में नन्दनामिध ही महावन श्रेष्ठ है । इसही तरह से वीर, ज्ञान सुशील से सुश्रेष्ठ है ||१८|| शाल्मली तरु जाति में सब भाँति शोभाधाम है, सुरसुपर्ण कुमार की रति का सुखद विश्राम है । काननों में श्रेष्ठ नन्दन वन जगत- विख्यात है, ज्ञान से, वर शील से त्यों वीर जग विख्यात है ||१८|| - वृक्षों में शाल्मली वृक्ष श्रेष्ठ है, जिस पर सुपर्णकुमार जाति के भवनपति देव क्रीड़ा किया करते हैं । संसार के समस्त सुन्दर वनों में नन्दन वन श्रेष्ठ है, जो सुमेरु पर्वत पर अवस्थित है । अनन्त ज्ञानी भगवान् महावीर भी इसी प्रकार ज्ञान और शील में सर्वश्रेष्ठ महापुरुष थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001420
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1981
Total Pages58
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & agam_related_other_literature
File Size2 MB
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