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________________ नगर वीर-स्तुति अणत्तरं धम्ममुईरइत्ता, अणुत्तरं झाणवरं झियाइ । सुसुक्क - सुक्कं, अपगंड-सुक्कं, संखिंदु - एगंतवदात - सुक्कं ॥१६॥ संसार - तारक धर्म का उपदेश दे संसार को। ध्याते सुनिर्मल ध्यान प्रभु, कर दूर चित्त-विकार को॥ वह ध्यान निर्मलता-विषय में श्वेत से भी श्वेत है। जल-फेन, शंख, शशांक के सम अत्यधिक सुश्वेत है ॥१६॥ कर प्रकाशित सर्व-श्रेष्ठ सुधर्म, ध्यान-स्थित हुए, शुक्ल-ध्यान प्रधान निर्मल ध्यान में अतिरत हुए। शक्ल ध्यान अतीव उज्ज्वल श्वेत-स्वर्ण-समान था, शख-चन्द्र-समान था, मल का न एक निशान था ।।१६।। भगवान महावीर ने सर्व-प्रधान अहिंसा धर्म का संसार को उपदेश देकर सब ध्यानों में श्रेष्ठ शुक्ल-ध्यान की साधना की। भगवान का वह शुक्ल-ध्यान ( आत्म-चिन्तन की शुद्ध धारा ) अर्जुन सुवर्ण, जल-फेन, शंख और चन्द्रमा के समान पूर्ण रूप से शुक्ल निर्मल था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001420
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1981
Total Pages58
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & agam_related_other_literature
File Size2 MB
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