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वीर-स्तुति
सुमेरु पर्वतों का राजा है, तो भगवान महावीर त्यागी, तपस्वी साधु और श्रावकों के राजा अर्थात् नेता थे। भगवान की अधिनायकता में हजारों साधक वासनाओं पर विजय प्राप्त कर बड़े आनन्द के साथ मोक्ष-साम्राज्य के अधिकारी बने।
सुमेरु अनेक प्रकार के रत्नों की प्रभा के कारण रंगविरंगा लगता है और भगवान महावीर भी सत्य शील, क्षमा, ज्ञान, दर्शन आदि अनन्त गुणों के कारण अनन्त रूप थे।
भगवान के ज्ञान का प्रकाश लोक-अलोक में सब ओर फैला हुआ है। कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं, जो उनके अनन्त ज्ञान में उद्भासित न होता हो।
सुदंसणस्से व जसो गिरिस्स, पवुच्चइ महतो पव्वयस्स । एतोवमे समणे नाय-पुत्ते,
जाई-जसो-दंसणनाणसीले ।।१४।। जैसे महापर्वत सुदर्शन मेरु का यश लोक में। तैसे जगद् - गुरु वीर का करते सुयश हैं लोक में। ऐसे सदुपमायुक्त मुनिवर ज्ञात-पुत्र महान थे। सद्ज्ञान, जाति, सुकीति, दर्शन, शील में असमान थे ॥१४॥ क्या अधिक कहना सूदर्शन मेरु को जो दीप्ति है, वीर स्वामी को वही उज्ज्वल मनोहर कोर्ति है। ज्ञातपुत्र महातपोधन वीर सर्व – महान थे, ज्ञान, दर्शन, शोल, यश, शुभ जाति में असमान थे ॥१४॥
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