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वीर-स्तुति से वीरिएणं पडिपुण्णवीरिए, सुदंसणे वा नग-सव्व-सेटठे । सुरालए वासि - मुदागरे से. विरायए णेग - गुणोववेए ॥६॥
वै वीर्य से प्रतिपूर्ण बल-शाली जगत में थे सही । सब पर्वतों में श्रेष्ठतर जैसे सुदर्शन है सही। आनंददाता देवगण को यह सुमेह है यथा । नानागुगालंकृत महाप्रभु वीर जिनवर थे तथा ॥६॥
शक्ति से प्रतिपूण भूधर-श्रेष्ठ मेरु - समान थे, देव - गण को मोदकारो, दिव्य-ज्योति-निधान थे। सत्य, शील, दया, क्षमा, धृति आदि गुण-भंडार थे, 'शुद्ध पद की भव्य शोभा के प्रवर अवतार थे ॥६॥
वीर्यान्तराय कर्म का क्षय करने से भगवान महावीर अनन्त शक्ति वाले थे। जिस प्रकार सुमेरु पर्वत संसार के सव पर्वतों में श्रेष्ठ है, स्वर्गवासी देवों के लिए हर्षोत्पादक है, अनेकानेक मनोहर गुणों से युक्त है, उसी प्रकार भगवान महावीर भी संसार में सबसे श्रेष्ठ, प्राणिमात्र के लिए आनन्दकारी एवं सत्य शील आदि अनन्त गुणों के अक्षय निधि थे।
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