SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीर - स्तुति पुच्छिस्सुणं समणा माहणा य, अगारिणो या पर-तित्थिया य । से केइ गंतहियं धम्ममाहु, अणेलिसं साह-समिवखयाए ॥१॥ गुरुदेव मुझ से पूछते हैं शुद्ध-संयम-संग्रही । ब्राह्मण गृहस्थाश्रम-निवासी बौद्ध आदि मताग्रही ॥ वह कौन है, जिसने बताया पूर्णतत्त्व विचार कर । तुलना-रहित सद्धर्म, जग का सर्वथा कल्याणकर ॥१॥ साधुजन, ब्राह्मण, गृहस्थित लोग मिलते जब कभी; पूछते हैं अन्य मत के मानने वाले सभी ।. कौन है वह सत्पुरुष ? जिसने कि निश्चय ज्ञान कर; पूर्ण अनुपम धर्म बतलाया जगत - कल्याण - कर ।।१। आर्य जम्बूस्वामी ने गुरुदेव सुधर्मा स्वामी गणधर से पूछ कि भगवन् ! मुझसे प्रायः श्रमण-साधु, ब्राह्मण, गृहस्थ एवं बौद्ध आदि अन्य मतों के मानने वाले सज्जन प्रश्न किया करते हैं कि जिसने अपने निर्मल ज्ञान के द्वारा अच्छी तरह स्वतंत्र रूप से निश्चय कर; विश्व का पूर्ण रूप से कल्याण करने वाले अनुपम धर्म (अहिंसा आदि) का कथन किया है, वह महापुरुष कौन है ? कैसा है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001420
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1981
Total Pages58
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & agam_related_other_literature
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy