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जैनदर्शन में सम्यग्दर्शन मतिज्ञान केवलज्ञान पातंजलयोग, 9, 15, 26, 50, 56 मतिज्ञान, 26, के प्रकार, 27, इन्द्रियप्रत्यक्ष, पार्श्वनाथ, 3
स्मृति आदि को मतिज्ञान के एक ही पिटक, 1-2
वर्ग में रखने का कारण, 29, में श्रुत पुद्गल, 16-17
का समावेश क्यों नहीं, 29-30, का पूज्यपाद, 5, 10, 26
निमित्तकारण, 30-31, के प्रकृति, 55
अवग्रहादि भेद, 31-32, का प्रकृतिबन्ध, 18
विषय, 36-37, और श्रुतज्ञान, प्रत्यक्ष, 30-36, 38, 44
36-37 प्रत्यभिज्ञा, 28, 31, 39-40 मतिप्रकार, परोक्षप्रमाण, 38 प्रदेश, 16-17
मन, 13, 37 प्रमाणलक्षण, 37
मनन, 4, काम हत्त्व, 7-8, का मतिज्ञान में प्रमाणमीमांसा, 47
परिवर्तन, 26-30, का निमित्तकारण, प्रमाणमीमांसास्वोपज्ञवृत्ति, 28
31, और अवग्रहादि भेद, 33-34, प्रशम, 11
और अर्थावगह 35-36, प्रशस्तपाद, 55
मन:पर्यायज्ञान, 26 प्रसाद, 6, 21-22
महाभारत, 15 प्रसंख्यान, 9
महावीर, 3, 55, 58-59 प्राप्यकारित्व-अप्राप्यकारित्व, 36 महेन्द्रकुमार, जैन, 28 बन्ध, 18-19
महेश्वर, 55 बुद्ध, 3, 7, 52-53, 56 मिलिन्दपश्न, 53 बृहदारण्यकोपनिषद्, 4-5
मोहनीय कर्म, 47 बौद्धधर्मदर्शन, और चार सोपान, 4-5 मोक्ष, 12, 19-20 बौद्धपरम्परा, और सर्वज्ञत्व, 51-53 यशोविजयजी, उपाध्याय, 11, 13 भगवतीसूत्र, 41, 55
योग (प्रवृत्ति), 18 भगवद्गीता, 10
योगभाष्य, 12 भागवत, 2
योगभाष्यकार, 56 मज्झिमनिकाय, 4, 52
योगसूत्र, 53 ‘मति', का अर्थ, 26
योगिज्ञान, 26 मति, और मनन, 5, 26-30, 37 रसबन्ध, 18-19 मति (इन्द्रियप्रत्यक्ष), 28
राजचन्द्र, श्रीमद्, 51
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