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________________ जैनदर्शन में सम्यग्दर्शन मतिज्ञान केवलज्ञान के हेतु हास्यास्पद प्रयत्न करने में जुट गये। वैज्ञानिक खोजों से महावीर की सर्वज्ञता खण्डित होती है, इतना ही नहीं किन्तु महावीर की वीतरागता की साधना का जो सच्चा उपदेश है, उसके प्रति भी संशय और अविश्वास युवा पीढी में उत्पन्न होता है। महावीर को केवलज्ञानी में से सर्वज्ञ बनाकर जैन धर्म की प्रभावना नहीं अपि तु हानि की गई है। महावीर मोक्षमार्ग के, वीतरागमार्ग के सर्वोत्कृष्ट उपदेष्टा थे । खगोल, भूगोल, आदि के उपदेष्टा नहीं ही थे। निर्मोही का अल्पज्ञेयों का ज्ञान भी पूर्णज्ञान जैन शास्त्रों में बारबार कहा गया है कि अल्पमोही को कम ज्ञान हो तो भी वह ज्ञानी है, जब कि बहमोही को सर्व शास्त्रों का ज्ञान हो तो भी वह अज्ञानी है। यह दिखाता कि जैन मतानुसार संख्या की दृष्टि से कितनी वस्तुएँ व्यक्ति जानता है, उसका महत्त्व नहीं है। किन्तु उसकी आन्तरिक शुद्धि कितनी है, उसका महत्त्व है। ऐसा होने से जो निर्मोही है या वीतरागी है उसे संख्या की दृष्टि से अल्प वस्तुओं का ज्ञान हो तो भी वह पूर्ण ज्ञानी है, ऐसा फलित होता है। इस प्रकार हमने पीछे कहा है उसी प्रकार जो ज्ञान अक्लिष्ट है, जो ज्ञान राग से असंस्पृष्ट है, वह ज्ञान पूर्णज्ञान है, ऐसा स्पष्टत: फलित होता है। अन्य तर्कदोष जैनों ने सर्वज्ञत्व को सभी द्रव्यों का और उनके सभी पर्यायों का साक्षात्कारात्मक अनुभवात्मक ज्ञान माना है। इस कारण से सर्वज्ञ मानने में कैसी तार्किक आपत्तियाँ आती हैं, इसका विचार करें। हम तो अश्लिल, जुगुप्साप्रेरक, घृणाजनक अदर्शनीय दृश्यों देखने से बचने के लिए आँखें बन्द कर देते हैं, दूर चले जाते हैं, उस ओर जाते ही नहीं हैं। परन्तु सर्वज्ञ को तो ऐसे दृश्य देखने ही पड़ते हैं, इनमें से वे बच नहीं सकते, वे जो सर्वज्ञ ठहरे। हम तो दुर्गन्ध के अनुभव से बचने के लिए नाक बन्द करते हैं या स्थान का त्याग कर देते हैं परन्तु सर्वज्ञ को तो अनन्त प्रकार की, सिर चकरानेवाली दुर्गन्धों का अनुभव करना ही पड़ता है क्योंकि वे सर्वज्ञ बने हैं। इसी प्रकार उन्हें सभी प्रकार के खराब स्पों का, रसों का और शब्दों का भी अनुभव करना ही पडेगा। और भी, वे सर्वज्ञ होने के कारण अन्यों को जिन जिन अनुभव होते हैं उन सर्व अनुभवों का भी साक्षात् अनुभव उन्हें करना ही होगा न ? अन्यथा, वे सर्वज्ञ कैसे कहलाते ? इस प्रकार अन्य के अनुभव जैसा ही अनुभव उन्हें करना ही पड़ेगा, क्योकि उनका सर्व ज्ञान अनुभव रूप ही है। अन्य स्त्रीस्पर्श का अनुभव करता है तो सर्वज्ञ को भी स्त्रीस्पर्श का अनुभव आ पड़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001419
Book TitleJain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagin J Shah
PublisherJagruti Dilip Sheth Dr
Publication Year2000
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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