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केवलज्ञान चतुरार्यसत्य का साक्षात्कार करते हैं और उसी लिए वे करुणा से प्रेरित होकर कषायसंतप्त संसारीओं के उद्धार के हेतु स्वानुभूत मार्ग का उपदेश देते हैं। वे जगत की अन्य सभी वस्तुओं को जानते हैं या नहीं, इस निरर्थक बात का हमें कोई प्रयोजन नहीं है। हमें तो यही देखना चाहिए कि उन्होंने इष्ट तत्त्व का अर्थात् धर्म का, मार्ग का साक्षात्कार किया है या नहीं ? वे साक्षात् धर्मज्ञ हैं या नहीं ? मोक्षमार्ग में अनुपयोगी चींटीमकोडे की संख्या के ज्ञान का धर्म के साथ क्या सम्बन्ध ?32 प्रतिष्ठित सर्वज्ञत्व का सर्वथा निषेध करना कठिन होने से धर्मकीर्ति सिद्धान्ततः उसका विरोध नहीं करते तथापि उसको निरर्थक तो अवश्य कह देते हैं। वे कुमारिल को कहते हैं कि भले कोई मनुष्य सर्वज्ञ न बने, लेकिन उसे धर्मज्ञ तो बनना चाहिए। वे सर्वज्ञता के समर्थकों को कहते हैं कि उन्हें मीमांसको के सामने सर्वज्ञता पर बल देकर उसकी स्थापना में पड़ने की बजाय धर्मज्ञता की स्थापना में पडना चाहिए । वास्तविक विवाद तो इस प्रश्न परत्वे है कि मनुष्य को धर्म का साक्षात् प्रत्यक्ष अनुभवरूप ज्ञान होता है या नहीं ? धर्म के विषय में धर्मज्ञ मनुष्य को प्रमाण मानना चाहिए या अपौरुषेय वेद को ? तात्पर्य यह है कि जहाँ कुमारिल ने प्रत्यक्षानुभवजन्य धर्मज्ञता का निषेध करके धर्म के विषय में अपौरुषेय वेद का ही अव्याहत अधिकार सिद्ध किया वहाँ धर्मकीर्ति ने प्रत्यक्षानुभवजन्य धर्मज्ञता का समर्थन करके वीतरागी धर्मज्ञ मनुष्य को ही धर्म के विषय में अन्तिम प्रमाण के रूप में स्वीकार किया और उसका ही अधिकार माना। धर्मकीर्तिने सर्वज्ञत्व की अनुचित जूठी प्रतिष्ठा को तोड़कर धर्मज्ञत्व की उचित सच्ची प्रतिष्ठा को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण उचित कार्य किया है, उसको सर्व धर्मनेताओं को गम्भीर रूप में ध्यान में रखना चाहिए। सर्वज्ञत्व और कर्मसिद्धान्त का परस्पर विरोध ___ जैनोंने केवलज्ञान का सर्वज्ञत्व के साथ अभेद कर के और सर्वज्ञत्व का अर्थ सब द्रव्यों और उनकी भूत, वर्तमान और भावी सभी अवस्थाओं को युगपद् जाननेवाला प्रत्यक्ष ज्ञान, ऐसा करके पीछले द्वार से आत्यंतिक नियतिवाद का अनजान में स्वीकार कर लिया, जो आत्यंतिक नियतिवाद कर्मसिद्धान्त का बिलकुल विरोधी है। जो कोई इसी वक्त प्रत्येक भावी क्षणों में होनेवाली मेरी मानसिक, वाचिक, कायिक दशाओं को और क्रियाओं को सन्दर्भो सहित सम्पूर्णत: जानता है, मेरे प्रतिक्षण होनेवाले सभी भावी अध्यवसायों को, मनोभावों को जानता है, भावी प्रत्येक क्षण में कहाँ किसके सम्बन्ध में किस प्रकार किन साधनों से मैं क्या करनेवाला हूँ, उन सब को वह जानता है, तो उस से नितान्त यही फलित होता है कि मेरा भावी आत्यंतिक रूप में नियत
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