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जैनदर्शन में मतिज्ञान का प्रयोग करता है। इस हकीकत का लाभ उठाकर जैन चिन्तकों ने (जिसमें नन्दिसूत्र आदि आगमों का भी समावेश होता है) मनन को ‘मति' नामक विशेष ज्ञान में परिवर्तित करके, उन सभी प्रमाणों को उसमें समाविष्ट करके, प्रमुखतः प्रमाणशास्त्रीय दृष्टि से उसकी विचारणा की है। इस प्रकार मतिज्ञान उनके मतानुसार उन सभी प्रमाणों के लिए एक सामान्य नाम बन गया। साधक के लिए प्रमाणशास्त्र का शास्त्रीय ज्ञान आवश्यक नहीं है। प्रमाणशास्त्र से अनभिज्ञ भी अच्छा मनन कर सकता है और यही अध्यात्मविद्या में भी अपेक्षित है। कालान्तर में यह वस्तु ही विस्मृत हो गई हो ऐसा प्रतीत होता है और फलतः श्रुत के पश्चात् होने वाले मति का क्रम उलट दिया गया है, और मति तथा श्रुत का प्रमुखतः प्रमाणशास्त्रीय दृष्टि से विचार किया गया है। इस प्रकार जैनों ने अपना अलग प्रमाणशास्त्र निर्माण करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया। प्रत्येक दर्शन अपना अपना प्रमाणशास्त्र निर्माण करे उसमें कुछ गलत नहीं है और करना भी चाहिए, किन्तु जैन चिन्तकों ने आध्यात्मिक चार सोपानों की मूलभूत योजना को बिलकुल रद्द करके उसका नामोनिशान मिटा कर उस पर प्रमाणशास्त्र खड़ा करने का प्रयत्न किया वह अक्षम्य है। उसके बावजूद उन्होंने मनन में से परिवर्तित किए मतिज्ञान में कतिपय ऐसी बातें हैं जो मूल मनन की ओर निर्देश किए बिना रहती नहीं हैं और कतिपय प्रश्नों के उत्तर मूल मनन ही मति है ऐसी धारणा करने से मिल जाते हैं-अन्यथा नहीं मिलते हैं। मतिज्ञान के प्रकार
आगमों में मतिज्ञान का वर्णन है और तत्त्वार्थसूत्र में आगमगत मतिज्ञान के वर्णानों का व्यवस्थित संकलन किया गया है। उसके आधार पर यहाँ समीक्षा-परीक्षापूर्वक मतिज्ञान विषयक विचारणा की जायेगी। ___ मतिश्रुतावधिमन:पर्यायकेवलानि ज्ञानम् (१-९) यहाँ पाँच ज्ञान बताये हैं। पश्चात् एक सूत्र (१-१३) आता है : मतिः स्मतिः संज्ञा चिन्ता अभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् । सूत्र का अर्थ है-मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, अभिनिबोध ये सब शब्द पर्यायशब्द हैं- एकार्थक हैं। तात्पर्य यह है कि मति मति है, स्मृति मति है, संज्ञा मति है, चिन्ता मति है और अभिनिबोध भी मति है। अर्थात् मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, अभिनिबोध ये सब मति हैं। उसका अर्थ यह हुआ कि मति, स्मृति आदि मति के प्रकार हैं। इस वस्तु को दृष्टान्त से समझे। मनुष्य जीव है, हाथी जीव है, घोडा जीव है। इस अर्थ में मनुष्य, हाथी, घोडा, जीव अनर्थान्तर हैं। इसका अर्थ यह कि मनुष्य, हाथी, घोडा आदि का सामान्य नाम 'जीव' है। दूसरे शब्दों में मनुष्य, हाथी, घोडा
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