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गा० २६ ]
अप्पाबहुअं मणुसगईए सव्वत्थोवा मिच्छत्तस्स संकामया। $ १९८. सम्माइट्ठिरासिपमाणत्तादो।
8 सम्मत्तस्स संकामया असंखेज्जगुणा।
$ १९९. कारणमुव्वेल्लमाणो पलिदोवमासंखेजदिभागमेत्तो मिच्छाइहिरासी गहिदो त्ति।
® सम्मामिच्छत्तस्स संकामया विसेसाहिया।
६ २००. किं कारणं ? अणंतरपरूविदपलिदोवमासंखे०भागमेत्तुव्वेल्लणरासी सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सरिसो लब्भइ। पुणो सम्मत्ते उव्वेल्लिदे संते सम्मामिच्छत्तं उव्वेल्लमाणो पलिदो०असंखे०भागमेत्तो मिच्छाइद्विरासी संखेजो सम्माइट्ठिरासी च सम्भामिच्छत्तस्स लब्भइ । एदेण कारणेण विसेसाहियत्तं जादं ।
8 अपंताणुबंधीणं संकामया असंखेज्जगुणा । $ २०१. कुदो ? मणुसमिच्छाइट्ठिरासिस्स पहाणतादो ।
8 सेसाणं कम्माणं संकामया ओघो। ६ २०२. कुदो? ओघालावं पडि विसेसाभावादो। तदो ओघालावो णिरवसेसमेत्थ शंका—यह अल्पबहुत्व सूत्र में नहीं कहा गया है फिर यहां क्यों बतलाया जा रहा है ? समाधान नहीं क्योंकि सत्रका काम सूचना करनामात्र है। * मनुष्यगतिमें मिथ्यात्वके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं । ६ १६८. क्योंकि स्थूलरूपसे ये मनुष्य सम्यग्दृष्टियोंका जितना प्रमाण है उतने हैं। * सम्यक्त्वके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।
१६६. क्योंकि यहां उद्वलना करनेवाले पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण मिथ्यादृष्टि जीवोंकी राशिका ग्रहण किया है।
* सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक जीव विशेष अधिक हैं।
६२००. क्योंकि समनन्तर पूर्व जो पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवराशि कही है वह सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दोनोंके संक्रमकी अपेक्षा समान है किन्तु सम्यक्त्वकी उद्वेलना कर लेनेके बाद पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण ऐसी मिथ्यादृष्टि राशि है जो केवल सम्यग्मिथ्यावकी उद्वेलना करती है तथा ऐसे संख्यात सम्यग्दृष्टि जीव भी हैं जो केबल सम्यग्मिथ्यात्वका संक्रम करते हैं, इस कारणसे सम्यक्त्वके संक्रामकोंसे सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक मनुष्य विशेष अधिक हो जाते हैं।
* अनन्तानुबन्धियोंके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। ६ २०१. क्योंकि यहाँ मनुष्य मिथ्यादृष्टिराशिकी प्रधानता है। * शेष कर्मोंके संक्रामकोंका अल्पबहुत्व ओघके समान है। $ २०२ क्योंकि ओघप्ररूपणासे इसमें कोई विशेषता नहीं है, इसलिये पूरेके पूरे ओघ
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