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________________ ३८६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * अवत्तव्वसंकामया असंखेज्जगुणा । भुजगार $ ८१७. एत्थ वि गुणगारो आवलि० असंखे० भागमेत्तो । कुदो ? पलिदोवमासंखेज्जभागमेत्तवेदग-उवसमपाओग्गुच्वेल्लणकालब्भंतरसंचयणिबंघणादो कामयरासीदो अद्धपोग्गल परियट्ट कालब्भंतरसंचिदणिस्संतकम्मियरा सिणिस्संदस्सावत्तव्वसंकामयरासिस्स असंखेज्जगुणत्ते विसंवादाभावादो । * अप्परसंकामया असंखेज्जगुणा । असंखेज्ज - ९ ८१८. अवत्तव्वसंकामयरासी उवसमसम्माइट्ठीणमसंखे ० भागो । एसो पुण उवसम - वेदगसम्माइद्विरासी सव्वो उब्वेल्लमाणमिच्छाइट्ठिरासी च तदो गुणो जादो । * तारबंधी सव्वत्थोवा अवत्तव्वसंकामया । S -१९. कुदो ? पलिदोवमासंखेज्जभागपमाणत्तादो | * भुजगार संकामया अंतगुणा । ९८२०. कुदो ? सव्वजीवरासिस्स असंखेज्जभागपमाणत्तादो । * अवदिसंकामया असंखेज्जगुणा । $ ८२१. कुदो ? सव्वजीवरासिस्स संखेज्जभागपमाणत्तादो । * अप्पयरसंकामया संखेज्जगुण । Jain Education International [ बंधगो ६ * उनसे अवक्तव्य संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं । $ ८१७. यहाँ पर भी गुणकार आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि वेदक और उपशमसम्यक्त्वके योग्य पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण उद्व ेलनकालके भीतर सञ्चित हुई भुजगार संक्रामक जीवराशिसे अर्धपुद्गलपरिवर्तन कालके भीतर सञ्चित हुई उक्त प्रकृतियों के सत्कर्म से रहित जीवराशिमेंसे प्राप्त हुई अवक्तव्य संक्रामक जीवराशिके असंख्यातगुणे होने में कोई विसंवाद नहीं है । * उनसे अल्पतरसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं । $ ८१८. क्योंकि अवक्तव्य संक्रामक जीवराशि उपशमसम्यग्दृष्टियों के असंख्यातवें भागप्रमाण है । परन्तु यह जीवराशि उपशम और वेदकसम्यग्दृष्टि तथा उद्व ेलना करनेवाली समस्त मिध्यादृष्टि राशिप्रमाण है, अतः पूर्वोक्त राशिसं यह राशि असंख्यातगुणी हो गई है । * अनन्ताबन्धियोंके अवक्तव्यसंक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं । ९८१६. क्योंकि ये पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण 1 * उनसे भुजगारसंक्रामक जीव अनन्तगुणे हैं । ८२०. क्योंकि ये सब जीवराशिके संख्यातवें भागप्रमाण हैं 1 * उनसे अवस्थितसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं । $ ८२१. क्योंकि ये सब जीवराशिके संख्यातवें भागप्रमाण हैं । * उनसे अल्पतरसंक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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