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________________ ३७८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ धंधग. ६ संकामओ च । सिया एदे च अवत्तव्यसंकामया च। आदेसेण सव्वणेरइय०-सव्वतिरिक्ख-मणुणअपज्ज०-सव्वदेवा विहत्तिभंगो। मणुसतिय०३ मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि० विहत्तिभंगो। सोलसक०-णवणोक० अप्पद०-अवट्ठि० णियमा अत्थि । सेसपदाणि भयणिज्जाणि । भंगा णव ९ । एवं जाव अणाहारि ति । ७८२. एत्थ सुगमत्तादो सुत्तेणापरूविदाणं भागाभाग-परिमाण-खेत्त-फोसणाणं किं चि समासपरूवणट्ठमुच्चारणावलंवणं कस्सामो। तं जहा–भागाभागाणु० दुविहो गिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण विहत्तिभंगो। णवरि बारसक० णवणोक० अवत्त. अणंतिमभागो। आदेसेण सव्वणेरइय-सव्वतिरिक्ख-मणुसअपज०-सव्वदेवा त्ति विहत्तिभंगो। मणुसा० विहत्तिभंगो। णवरि बारसक०-णवणोक० अवत्त० असंखे०भागो। मणुसपज०मणुसिणी० विहत्तिभंगो । णवरि बारसक०-णवणोक० अवत्त० संखे०भागो। एवं जाव० । ___$ ७८३. परिमाणाणु० दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण विहत्तिभंगो । णवरि बारसक०-णवणोक० अवत्त०संका० केत्तिया ? संखेजा। एवं मणुस०३ । सेसमग्गणासु विहत्तिभंगो। $ ७८४. खेत्तं पोसणं च विहत्तिभंगो । णवरि ओधे मणुसतिए च बारसक०संक्रामक जीव नियमसे हैं। कदाचित् ये जीव हैं और श्रवक्तव्यसंक्रामक एक जीव है । कदाचित् ये जीव हैं और अवक्तव्यसंक्रामक नाना जीव हैं। आदेशसे सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त और सब देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। मनुष्यत्रिकमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। सोलह कषायों और नौ नोकषायोंके अल्पतर और अवस्थित पदके संक्रामक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। भंग ६ हैं। इसीप्रकार अनाहारक मागेणा तक जानना चाहिए। ६७८२. यहाँ पर सुगम होनेसे सूत्र द्वारा नहीं कहे गये भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र और स्पर्शनका कुछ संक्षेपमें कथन करनेके लिए उच्चारणाका अवलम्बन करते हैं। यथा-भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे स्थितिविभक्तिके समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषायों और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यसंक्रामक जीव अनन्तवें भागप्रमाण हैं। आदेशसे सब नारकी, सब तिर्यश्च, मनुष्य अपर्याप्त और सब देवोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। मनुष्योंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि बारह कषायों और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यसंक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषायों और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यसंक्रामक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ६७८३. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे स्थितिविभक्तिके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषायों और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यसंक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए । शेष मार्गणाओंमें स्थितिविभुक्तिके समान भंग है। ७८४. क्षेत्र और स्पर्शनका भङ्ग स्थितिविभक्तिके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि ओघमें और मनुष्यत्रिकमें बारह कषायों और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यसंक्रामकोंका क्षेत्र और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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