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________________ ३५६ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ संखेज्जगुणा ४८ । णवुंसयवेदबंधगद्धा विसेसाहिया ५८ । एदमप्पा बहुअं साहणं काऊणाणंतरपरूविदमुच्चारणप्पाबहुअं सकारणमणुगंतव्वं । एवं णिरओघो समत्तो । एवं चैव पढमाए पुढवीए । एत्तो विदियपुढवीए सेसपुढवीणं देसामा सयभावेण पाबहुअपरूवणट्ठमुत्तरसुत्त कलावमाह - * विदियाए सव्वत्थोवो अताणुबंधीणं जहर ट्ठिदिसंकमो । $ ७३४. तत्थ विसंजोयणाचरिमफालीए करणपरिणामेहि लद्धयादावसेसिदाए सव्वत्थवत्ताविरोहादो । * सम्मत्तस्स जहणणहिदिसंकमो असंखेज्ज गुणो । ९ ७३५. कुदो ? उव्वेल्लणच रिमफालीए लद्धजहण्णभावत्तादो । * सम्मामिच्छुत्तस्स जहडिदिसंकमो विसेसाहिओ । $ ७३६. दोण्हं पि उव्वेल्लणाचरिमफालीए जहण्णसामित्तं जादं । किंतु समत्तचरिमुव्वेल्लणफालिं पेक्खिऊण सम्मामिच्छत्तुव्वेल्लणचरिमफाली विसेसाहिया । कारणं पढमदाए उव्वेल्लमाणो मिच्छाइट्ठी सव्वत्थ सम्मामिच्छत्तुव्वेल्लणकंड यादो सम्मत्तस्स विसेसाहियमेव ट्टिदिखंडयघादं करेइ जाव सम्मत्तमुच्वेल्लिदं ति । पुणो सम्मामिच्छत्तमुव्वेल्लेमाणो सम्मत्तचरिमफालीदो विसेसाहियकमेण द्विदिखंडयमागाएदि जाव सगचरिमट्ठिदिखंडयादो ति । तदो एदमेत्थ विसेसाहियते कारणं । बन्धककाल विशेष अधिक है ५८ । इस अल्पबहुत्वको साधन करके अनन्तर कहे गये उच्चारणा पबहुत्वको सकारण जानना चाहिए। इस प्रकार सामान्य नारकियोंमें अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । इसी प्रकार पहिली पृथिवीमें जानना चाहिए । आगे दूसरी पृथिवीमें शेष पृथिवियों के देशामर्पक रूपसे अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिए आगे के सूत्रकलापको कहते हैं— * दूसरी पृथिवीमें अनन्तानुबन्धियोंका जघन्य स्थितिसंक्रम सबसे स्तोक है । $ ७३४. क्योंकि करण परिणामोंके द्वारा घात होनेसे शेष बची हुई विसंयोजनासम्बन्धी अन्तिम फालिके सबसे स्तोक होनेमें कोई विरोध नहीं है । * उससे सम्यक्त्वका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है । $ ७३५. क्योंकि उद्वेलनाकी अन्तिम फालिमें इसका जधन्यपना प्राप्त होता है । * उससे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है । ६ ७३६. क्योंकि यद्यपि दोनोंका ही उद्वेलनाकी अन्तिम फालिमें जघन्य स्वामित्व प्राप्त हुआ है फिर भी सम्यक्त्वकी अन्तिम उद्वेलनाफालिको देखते हुए सम्यग्मिथ्यात्वकी अन्तिम उद्वेलन फालि विशेष अधिक है । कारण कि प्रथम अवस्थामें उद्वेलना करनेवाला मिथ्यादृष्टि जीत्र सम्यक्त्वकी उद्वेलना होने तक सर्वत्र सम्यग्मिथ्यात्वके उद्वेलनाकाण्डकसे सम्यक्त्वका स्थितिकाण्डकघात विशेष अधिक ही करता है । फिर सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करता हुआ अपने अन्तिम स्थितिकाण्डकके प्राप्त होने तक सम्यक्त्वकी अन्तिम फालिसे विशेष अधिकके क्रमसे स्थितिकाण्डकको ग्रहण करता है । इसलिए यह यहाँ पर विशेष अधिक होनेका कारण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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