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________________ ३४८ जयधवलासहिदे कसायपाहुहे . [बंधगो ६ द्विदिसं० तुल्लो विसेसाहिओ। एसो च विसेसो सुगमो ति सुत्तयारेण ण परूविदो । एवं जाव०। * एत्तो जहएणयं । ६७०३. सुगमं। * सव्वत्थोवा सम्मत्त-लोहसंजलणाणं जहएणद्विदिसंकमो । ६७०४. एयट्ठिदिपमाणत्तादो। ॐ जहिदिसंकमो असंखेजगुणो। ७०५. समयाहियावलियपमाणत्तादो । * मायाए जहएणद्विदिसंकमो संखेजगुणो । । ७०६. आवाहापरिहीणद्धमासपमाणत्तादो। * जढिदिसंकमो विसेसाहिओ। $ ७०७. केत्तियमेत्तेण ? समयूणदोआवलियपरिहीणाबाहामेत्तेण । * माणसंजलणस्स जहण्णहिदिसंकमो विसेसाहियो । $ ७०८. समयूणदोआवलियूणद्धमासादो अंतोमुहुर्णमासस्सेदस्स तदविरोहादो। ॐ जद्विदिसंकमो विसेसाहिओ। विशेष सुगम है, इसलिए सूत्रकारने इसका कथन नहीं किया। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक नानना चाहिए। * आगे जघन्यका प्रकरण है। ६७०३. यह सूत्र सुगम है। * सम्यक्त्व और लोभसंज्वलनका जघन्य स्थितिसंक्रम सबसे स्तोक है। ६७०४. क्योंकि वह एक स्थितिप्रमाण है। * उससे यत्स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है । $ ७०५. क्योंकि वह एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण है। * उससे मायाका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। ६७०६. क्योंकि वह आबाधासे हीन अर्धमास प्रमाण है । * उससे यस्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। ६७०७. कितना अधिक है ? एक समय कम दो आवलिसे हीन आबाधाकाल प्रमाण अधिक है। * उससे मानसंज्वलनका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। ६७०८. क्योंकि एक समय कम दो आवलिसे हीन अर्घमाससे अन्तर्मुहूर्तकम एक माहके विशेष अधिक होनेमें विरोध नहीं आता। * उससे यत्स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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