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________________ मा० ५८ ] उत्तरपयडिट्ठिदिकमे एयजीवेण कालो ३२७ * अहावीसाए पयडीएं जहण्णट्ठिदिसंकमकालो केवचिरं कालादो होदि ? जहरगुकस्से एयसमभो । $ ६६४. अट्ठावीससंखाए परिच्छिण्णाणं मोहपयडीणं जहण्णट्ठिदिसंकम कालो एयजीवविसओ कियचिरं होइ ति आसंकिय तणिद्देसो कओ - जहण्णु० एयसमओ ति । होउ णाम जेसिं कम्माणं जहण्णडिदिसंकमस्स चरिमफालिविसए समयाहियावलियाए च सामित्तं तेसिं जहण्णुक्कस्सेणेयसमयकालणियमो, ण सेसाणमिच्चासंकाए तत्थतणविसेससंभवपदुष्पायणट्टमिदमाह - वरि इत्थि एवं सयवेद - छुराणोकसायाणं जहडिदिसंकमकालो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुक्कस्से अंतोमुहुत्तं । ९६६५. एदेसिमट्टहं णोकसायाणं चरिमट्ठिदिखंडए लद्धजहण्णसामित्ताणं जहण्णट्ठिदिसंकमजहण्णुक्कस्सकालो अंतोमुहुत्तपमाणो होइ ति सुत्तत्थसंगहो । छण्णोकसायाणं ताव जहण्णुक्कस्सकालो एयवियप्पो' चैत्र, चरिमडिदिखंडयुकीरणद्धापडिबद्धणिव्वियप्पंतो मुहुत्तपमाणत्तादो । सय वेदस्स पढमट्ठिदिविवक्खाए आवलियमेत्तो । तदविवक्खाए चरिमट्ठिदिखंडयुक्कीरणद्धामेत्तो जहण्णुकस्सकालो हो । * अट्ठाईस प्रकृतियों के जघन्य स्थितिसंक्रमका काल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । $ ६६४ यहाँ मोहनीयकी अट्ठाईस प्रकृतियों के जघन्य स्थितिसंक्रमका एक जीवकी अपेक्षा कितना काल है ऐसी आशंका करके उसका निर्देश जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है इस रूपसे किया है। जिन कर्मोंके जघन्य स्थितिसंक्रमका स्वामित्व अन्तिम फालिके पतनके समय या एक समय अधिक एक आवलि कालके शेष रहने पर प्राप्त होता है उनके जघन्य और उत्कृष्ट कालका नियम एक समयप्रमाण भले ही रहा आ ओ किन्तु शेष कर्मोंकी जघन्य स्थिति के संक्रमके कालका यह नियम नहीं प्राप्त होता इस प्रकार इस आशंका के होने पर यहाँ जो विशेष काल सम्भव है उसका कथन करने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं * किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और छह नोकपायोंके जघन्य स्थितिसंक्रमका काल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । ९६६५. अन्तिम स्थितिकाण्डकके समय जघन्य स्वामित्वको प्राप्त होनेवाली इन आठ नोकपायों के जघन्य स्थितिसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है यह इस सूत्रका तात्पर्य है । उनमें से छह नोकषायोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक ही प्रकारका है, क्योंकि sahar स्थितिकाण्डक के उत्कीरणा कालसे सम्बन्ध रखनेवाला अन्तर्मुहूर्त एक ही प्रकारका है । नपुंसकवेदका जघन्य और उत्कृष्ट काल प्रथम स्थितिकी अपेक्षा एक आवलिप्रमाण है और उसकी विवक्षा नहीं करनेपर अन्तिम स्थितिकाण्डक के उत्कीरणाकालप्रमाण है । स्त्रीवेदका १. ० प्रती एयवियप्पा इति पाठः । २. श्र०प्रतौ - युक्कीरणद्धा पडिबद्ध गिव्वियप्पंतो जहरागुक्कस्सकालो इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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