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________________ ३१९ गा० ५८] उत्तरपयडिट्ठिदिसंकमे सामित्तं खंडयस्स सोदयक्खवयस्स चरिमविदिखंडयामादो असंखेजगुणत्तदंसणादो । तदो सोदएणेव गqसयवेदस्स जहण्णसामित्तमिदि सिद्धं । * छण्णोकसायाणं जहण्णहिदिसंकमो कस्स ? ६६५०. सुगमं । ® खवयस्स तेसिमपच्छिमद्विदिखंडयं संछुहमाणयस्स तस्स जहएणयं। ६६५१. एत्थ खवयस्से त्ति वयणमक्खवयवुदासदुवारेणाणियट्टिखवयस्स जहण्णसामित्तपदुप्पायणफलं, अण्णत्थ तजहण्णभावाणुवलद्धीदो। तेसिं छण्णोकसायाणमपच्छिमं सव्वपच्छिमं विदिखंडयं संछुहमाणयस्स संकामेमाणयस्स पयदजहण्णसामित्तं होइ । एत्थ चरिमफालिविसेसणं ण कयं, चरिमट्ठिदिखंडयचरिमफालीसु चेव सामित्तविहाणे विप्पडिसेहाभावादो। ६५२. एवमोघेण जहण्णसामित्तं सव्वासि मोहपयडीणं परूविदं । एत्तो ओघादेसपरूवणट्ठमुच्चारणावलंबणं कस्सामो । तं जहा-जह० पयदं । दुविहो णिदेसोओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० जह० द्विदिसं० कस्स ? अण्णद० दंसणमोहक्खवयस्स चरिमट्टिदिखंडयचरिमसमयसंकामयस्स । एवं सम्मामि० । सम्म० जह० ट्ठिदिसं० का अन्तिम स्थितिकाण्डक अन्तर्महत पहले ही क्षय हो जाता है, इसलिये वह स्वोदयसे चढ़े हुए क्षपक जीवके अन्तिम स्थितिकाण्डकके आयामसे असंख्यातगुणा देखा जाता है। अतः स्वोदयसे ही नपुसकवेदका जघन्य स्वामित्व प्राप्त होता है यह बात सिद्ध हुई। * छह नोकषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? ६६५०. यह सूत्र सुगम है । * जो क्षपक उनके अन्तिम स्थितिकाण्डकका संक्रम कर रहा है उसके छह नोकषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है । ६६५१. यहाँ सूत्र में 'खवयस्स' वचन अक्षपकके निराकरण द्वारा अनिवृत्तिक्षपकके जघन्य स्वामित्वका कथन करनेके लिये दिया है, क्योंकि अन्यत्र उसका जघन्य स्वामित्व नहीं उपलब्ध होता। इन छह नोकषायोंके अन्तिम स्थितिकाण्डकका 'संछुहमाणयस्स' अर्थात् संक्रम करनेवाले जीवके प्रकृत जघन्य स्वामित्व होता है। यहां सूत्रमें 'चरिमफालि' विशेषण नहीं दिया है तो भी अन्तिम स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालियोंके प्राप्त होने पर ही जघन्य स्वामित्वका विधान करनेमें कोई विरोध नहीं है। ६६५२. इस प्रकार ओघसे सब मोहप्रकृतियोंके जघन्य स्वामित्वका कथन किया। अब आगे ओघ और आदेशका कथन करनेके लिये उच्चारणाका अवलम्ब लेते हैं। यथा-जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघसे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? जो दर्शनमोहका क्षपक जीव अन्तिम स्थितिकाण्डकका अन्तिम समयमें संक्रम कर रहा है उसके होता है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य स्थितिसंक्रमका स्वामित्व जानना चाहिये । सम्यक्त्वका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? जिसे दर्शनमोहकी क्षपणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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