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________________ गा० ५८ ] उत्तरडिट्ठिदिकमे सामित्तं ३१७ ९६४५. आवलिया समयाहिया जस्स सकसायस्स सो आवलियसमयाहियसकसाओ । तस्स पयदजहण्णसामित्तं दट्ठव्वं । सकसायवयणेणेत्थ सुहुमसांपराइओ विवक्खिओ; सेसाणं समयाहियावलियविसेसणाणुववत्तीए । सो चैव खवयत्तेण विसेसिजदे, अखवयस्स पयदजहण्णसामित्तविरोहादो । * इत्थवेदस्स जहट्ठिदिसंकमो कस्स ? $ ६४६. सुगमं । * इत्थवेदोदय क्खवयस्स तस्स अपच्छिमट्ठिदिखंडयं संहमाण्यस्स तस्स जहण्यं । $ ६४७, एत्थित्थिवेदोदयक्खवयस्से त्ति वयणं सेसवेदोदयक्खवयपडिसेहफलं । णिरत्थयमिदं विसेसणं, अण्णवेदोदएण वि चढिदस्स खवयस्स जहण्णट्ठि दिसंकमाविंरोहादो । णच सोदय- परोदहि चढिदाणं खवयाणमित्थिवेदचरिमट्ठिदिखंडयम्मि विसरितभावो अत्थि, णवंसयवेदस्सेव तदणुवलंभादो । तम्हा अण्णदरवेदोदइल्लस्स खवयस्से ति सामितसो कायat त्ति । एत्थ परिहारो -- सच्चमेदमुदाहरणमेतं तु इत्थवेदोदयक्खवयावलंबणं णेदं तंतमिदि घेत्तव्वं । परोदएणेव सामित्तं कायव्वं, सोदएण पढमट्टिदीए ९ ६४५. जिस सकषाय जीवके एक समय अधिक एक आवल काल शेष हैं वह आवलिसमयाधिक कषाय जीव है । उसके प्रकृत जघन्य स्वामित्व जानना चाहिये । इस सूत्र में 'सकसाय' इस वचन द्वारा सूक्ष्मसाम्परायिक जीव लिया गया है, क्योंकि शेष जीवों के 'जिनके एक समय अधिक एक वलि काल शेष है' यह विशेषण नहीं बन सकता । उसमें भी वह जीव क्षपक ही होता है यह बतलाने के लिये क्षपक यह विशेषण दिया है, क्योंकि अक्षपक जीवके प्रकृत जघन्य स्वामित्व के होने में विरोध आता है । * स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है । $ ६४६. यह सूत्र सुगम है । * जो स्त्रीवेद के उदयवाला क्षपक जीव स्त्रीवेदके अन्तिम स्थितिकाण्डकका संक्रम कर रहा है उसके स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है । $ ६४७. शेष वेदके उदद्यवाले क्षपक जीवका निषेध करनेके लिये यहां सूत्र में 'इत्थवेदोदयखवयस्स' वचन दिया है । शंका —‘इत्थिवेदोदयखवयस्स' विशेषरण निरर्थक है, क्योंकि अन्य वेदके उदयसे चढ़े हुए क्षपक जीवके भी जघन्य स्थितिसंक्रमके होनेमें कोई विरोध नहीं आता है । स्वोदय या परोदय किसी भी प्रकार से चढ़े हुए क्षपक जीवोंके स्त्रीवेदके अन्तिम स्थितिखण्डमें किसी प्रकार की विसदृशता नहीं होती, क्योंकि जिस प्रकार स्वोदय और परोदयसे चढ़े हुए जीव के नपुंसकवेदके न्तिम स्थितिकाण्ड में विसदृशता होती है उस प्रकार यहाँ विसदृशता नहीं पाई जाती, इसलिये प्रकृत में स्त्रीवेदके उदयवाले क्षपक जीवके ऐसा निर्देश न करके 'किसी भी वेदके उदयवाले क्षपक जीवके ' इसप्रकार स्वामित्वका निर्देश करना चाहिये ? समाधान - यहाँ खीवेद के उदयवाले क्षपकका अवलम्ब लिया गया है सो यह उदाहरण - मात्र है, सिद्धान्त नहीं है यह बात सत्य है ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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