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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ च दुसु संकमोवलंभादो चउवीसदिकम्मंसियस्स तिविहमायोवसमे चदुण्हं तिसु संकमोव- . लद्धीदो च । 'तिण्णि तिगे एकगे च बोद्धव्वा' खवगस्स पुरिसवेदपरिक्खए तिण्हं तिसु संकमदंसणादो इगिवीस उवसामगस्स दुविह-मायोवसमे तिण्हमेकिस्से पडिग्गहत्तदसणादो च। 'दो दुसु एकाए वा' खवगस्स कोहे णिल्लेविदे इगिवीससंतकम्मियस्स च तिविहे मायोवसमे जादे जहाकम दोण्हं दुसु एक्किस्से च संकमोवलंभादो चउवीसदिकम्मंसियस्स वि दुविहलोहोवसमे जादे दोण्हं दुसु संकमस्स संभवोवलंभादो। 'एगा एगाए बोद्धव्वा', संजलणमाणे खविदे परिप्फुडमेव तदुवलंभादो ॥१२॥ एक तो जिस क्षपकने छह नोकषायोंका क्षय कर दिया है उसके चार प्रकृतियोंका चार प्रकृतियोंमें संक्रम उपलब्ध होता है और दूसरे चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले जीवके तीन प्रकारकी मायाका उपशम हो जाने पर चार प्रकृतियोंका तीन प्रकृतियों में संक्रम उपलब्ध होता है । 'तिण्ण तिगे एक्कगे च बोद्धव्वा' यह गाथाका दूसरा चरण है। इस द्वारा तीन प्रकृतिक संक्रमस्थानका तीन और एक प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमें संक्रम होता है यह बतलाया गया है. क्योंकि एक तो क्षपक जीवके पुरुषवेदका क्षय हो जाने पर तीन प्रकृतियोंका तीन प्रकृतियोंमें संक्रम देखा जाता है और दूसरे इक्कीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले उपशामक जीवके दो प्रकारकी मायाका उपशम हो जानेपर तीन प्रकृतिक संक्रमस्थानका एक प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थान देखा जाता है। 'दो दुसु एक्काए वा' यह गाथाका तीसरा चरण है। इस द्वारा दो प्रकृतिक संक्रमस्थानका दो और एक प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमें संक्रम होता है यह बतलाया है, क्योंकि क्षपक जीवके क्रोधका नाश हो जाने पर दो प्रकृतियोंका दो प्रकृतियोंमें और इक्कीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले उपशामक जीवके तीन प्रकारकी मायाका उपशम हो जाने पर दो प्रकृतियोंका एक प्रकृतिमें संक्रम उपलब्ध होता है तथा चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले जीवके भी दो प्रकारके लोभका उपशम हो जानेपर दो प्रकृतियोंका दो प्रकृतियोंमें संक्रम उपलब्ध होता है। 'एगा एगाए बोद्धव्या' इस द्वारा एक प्रकृतिक संक्रमस्थानका एक प्रकृतिक प्रतिग्रहस्थानमें संक्रम होता है यह बतलाया है, क्योंकि क्षपक जीवके संज्वलन मानका क्षय हो जानेपर स्पष्ट रूपसे उक्त संक्रमस्थान और प्रतिग्रहस्थान उपलब्ध होता है ॥१२॥
विशेषार्थ_इस गाथा द्वारा चार प्रकृतिक, तीन प्रकृतिक, दो प्रकृतिक और एक प्रकृतिक संक्रमस्थानोंके कौन कौन प्रतिग्रहस्थान हैं इसका खुलासा किया है। अब संक्रमस्थानों और प्रतिग्रहस्थानोंकी उक्त १० गाथाओंमें कही गई विशेषताका ज्ञान करनेके लिए कोष्ठक दिया जाता हैसत्तास्था० | संक्रमस्था०। प्रकृतियां प्रतिग्रहस्था०। प्रकृतियाँ | स्वामी २८ प्र० | २७ प्र० मिथ्यात्वके बिना | २२ प्र० | मिथ्यादृष्टिके | २८ प्रकृतियोंकी सब
बँधनेवाली २२ |सत्तावाला मिथ्या
प्रकृतियाँ दृष्टि २८ प्र० | २७ प्र० सम्यक्त्वके बिना| १९ प्र. | अविरत सम्य- | अविरत सम्य
ग्दृष्टिके बँधनेवाली ग्दृष्टि १७ प्रकृतियाँ व सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व
सब
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