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________________ १२२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ गुण | प्रति० | प्रकृतियां० संक्रमस्थान० प्रकृतियाँ देशविरत | १५ प्र० पूर्वोक्त १६ मेंसे अप्रत्या- | २७,२६,२३ पूर्ववत् | ख्यानावरण ४ के बिना १४ प्र० सम्यग्मि० के बिना | २२ प्र० | पूर्ववत् १३ प्र० | सम्यक्त्वके बिना | २१ प्र० | पूर्ववत् | ११ प्र० पूर्वोक्त १५ मेंसे प्रत्याख्या- २७, २६ | पूर्ववत् अप्रमत्त नावरण ४ के बिना व २३ प्र० १० प्र०1 सम्यग्मिथ्यात्वके बिना | २२ प्र० | पूर्ववत् ६ प्र० सम्यक्त्वके बिना २१ प्र० | पूर्ववत् अपूर्वकरण | ११ प्र० पूर्ववत् | २३ प्र० | पूर्ववत् |९ प्र० पूर्ववत् | २१ प्र. | पूर्ववत् उपशम | ७ प्र० चार संज्व०, पुरुषवेद, | २३,२२ व २३ पूर्ववत् ,२२सं० लोभके श्रेणि सम्यक्त्व व । २१ प्र. | बिना, २१ नपुंसकवेदके २४ प्र० सम्यग्मिथ्यात्व बिना सत्कर्मकी | ६ प्र० । पुरुषवेदके बिना ] २० प्र० | २३ मेंसे नपुंसकवेद, अपेक्षा स्त्रीवेद व संज्वलनलोभ कम कर देने पर १४ प्र० | २० मेंसे छह नोकषाय __ कम कर देने पर १३ प्र० । १४ मेंसे पुरुषवेदके कम कर देने पर क्रोधसंज्वलनके बिना | १३ मेंसे दो क्रोधोंको! कम कर देने पर १० प्र० | ११ मेंसे क्रोधसंज्वलन के कम कर देने पर ४ प्र० | मानसंज्वलनके बिना | दो मान कमकर देनेपर ७ प्र० मानसं०कम करदेने पर | माया संज्वलनके बिना, ५ प्र. दो माया कमकर देनेपर ४ प्र० मायासं० कमकर देनेपर २५० लोभसं० के बिना मिथ्या० व सम्यग्मि. सम्यक्त्व व सम्यग्मि० ११प्र० ८प्र. ३ प्र० २प्र० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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