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जयभवलासहिदे कसायपाहुरे [पदेसविहत्ती ५ णियमा अणुक० असंखे०गुणहीणा । एवं गर्बुस । पुरिसवेदस्स देवोघं । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
___६६. जहण्णए पयदं। दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्तस्स जहण्णपदेसविहत्तिओ सम्म०-सम्मामि०-एक्कारसक०-तिण्णिवेद० णियमा अजहण्ण. असंखेजगुणन्महिया। लोभसंज०-छण्णोक० णियमा अजह० असंखेजभागभहिया । सम्मत्तगुणेण पंचिंदिएसु वेछावहिसागरोवमाणि हिंडतेण संचिददिवडगुणहाणिमेत्तपंचिंदियसमयपबद्धाणं सगसगजहण्णदव्वादो असंखेजगुणतं मोतूण णासंखेजभागभहियतं, एइंदियउक्कस्सजोगादो वि पंचिदियजहण्णजोगस्स असंखे०गुणत्तुलंभादो। एत्थ परिहारो वुच्चदे--जदि वि वेछावहिसागरोवमेसु लोभसंजलर्ण णिरंतरं बंधतो वि सगजहण्णदव्वादो विसेसाहियं चेव, अप्पदरकालम्मि झीणदव्वादो होती है जो असंख्यातभागहीन होती है। सम्यक्त्वकी नियमसे अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातगुणी हीन होती है। इसीप्रकार नपुंसकवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । पुरुषवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष सामान्य देवोंके समान है। इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ-ओघसे जो सन्निकर्ष कहा है वह मनुष्यत्रिकमें अविकल घटित हो जाता है, इसलिए उनमें ओघके समान जाननेकी सूचना की है। मात्र मनुष्यिनियोंमें पुरुषवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष में कुछ विशेषता है, इसलिए उसका अलगसे निर्देश किया है। अनुदिश
आदिमें सब देव सम्यग्दृष्टि होते हैं, इसलिए उनमें अन्य देवोंसे विशेषता होनेके कारण उनमें सब प्रकृतियोंकी मुख्यतासे सन्निकर्षका अलगसे निर्देश किया है। विशेष स्पष्टीकरण स्वामित्वको देखकर कर लेना चाहिए। आगे अनाहारक मार्गणा तक इसी प्रकार अपनी अपनी विशेषताको जानकर सन्निकर्ष घटित कर लेना चाहिए।
___इस प्रकार उत्कृष्ट सन्निकर्ष समाप्त हुआ। ६६६. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और श्रादेश । ओघसे मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, ग्यारह कषाय और तीन वेदकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातगुणी अधिक होती है। लोभसंज्वलन और छह नोकषायोंकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है।
शंका-सम्यक्त्व गुणके साथ जो पञ्चेन्द्रियोंमें दो छयासठ सागर काल तक परिभ्रमण करता है उसके सञ्चित हुए डेढ़ गुणहानिप्रमाण पञ्चेन्द्रियसम्बन्धी समयप्रबद्ध अपने अपने जघन्य द्रव्यकी अपेक्षा असंख्यातगुणे होते हैं असंख्यातवें भाग अधिक नहीं, क्योंकि एकेन्द्रिय जीवके उत्कृष्ट योगसे भी पञ्चेन्द्रिय जीवका जघन्य योग असंख्यातगुणा पाया जाता है ?
समाधान--यहाँ उक्त शंकाका समाधान करते हैं-दो छयासठ सागर कालके भीतर लोभसंज्वलनका निरन्तर बन्ध करता हुआ भी अपने जघन्य द्रव्यसे वह विशेष अधिक ही होता
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